‘क़िस्से साहित्यकारों के’ - ‘हिंदी से प्यार है’ समूह की परियोजना है। इस मंच पर हम  साहित्यकारों से जुड़े रोचक संस्मरण और अनुभवों को साझा करते हैं। यहाँ आप उन की तस्वीरें, ऑडियो और वीडियो लिंक भी देख सकते हैं। यह मंच किसी साहित्यकार की समीक्षा, आलोचना या रचनाओं के लिए नहीं बना है।

हमारा यह सोचना है कि यदि हम साहित्यकारों से जुड़े संस्मरण और यादों को जो इस पीढ़ी के पास मौजूद है, व्यवस्थित रूप से संजोकर अपनी आने वाली पीढ़ी को दे सकें तो यह उनके लिए अनुपम उपहार होगा।



शुक्रवार, 14 अप्रैल 2023

धूमिल की संवेदनशीलता : एक उदाहरण

 एक बार पिता जी जब आई टी आई,करौदी, वाराणसी के परिसर में प्रवेश कर रहे थे,तभी कार्यालय से रोते हुए चपरासी बाहर निकल रहा था। उन्होंने अपनी साइकिल खड़ी की और चपरासी को बुलाया। चपरासी से पूछा, क्यों, क्या हुआ? वह फूटफूट कर रोने लगा। वह कुछ बोल नहीं पा रहा था। पिता जी ने उसे ढ़ाढ़स बधाया। वह चुप हुआ और बताया कि रात में बच्चे को हैजा हो गया था। इलाज़ के लिए रात भर उसे कबीर चौरा अस्पताल में भर्ती कराकर,उसी की देखरेख में आज आफिस आने में देर हो गई। प्रिंसिपल साहब अपना दुखड़ा सुनाया। उन्होंने मेरी एक न सुनी। मैं गिड़गिड़ाता रहा।वे मुझे गाली देते हुए दो तीन थप्पड़ मारे और बाहर निकल जाने के लिए कहा। ऐपसेंट भी कर दिए।अब मैं क्या करूं? घर जा रहा हूं ‌। पिता जी ने उसके बच्चे का हाल पूछा। अब उसे कुछ आराम है। चपरासी को साथ लिवाकर,वे प्रधानाचार्य के चैम्बर में गये। बात बढ़ी। उन्होंने प्रधानाचार्य से पूछा कि आपने उसे ऐपसेंट तो कर दिया लेकिन उसे मारा क्यों? बात बढ़ती गई। कुछ दिन बाद धूमिल जी को उस घटना को लेकर स्थानांतरण झेलना पड़ा। 

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रत्न शंकर पाण्डेय की स्मृति से 

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