डॉ० कुँअर बेचैन |
डॉ० कुँअर बेचैन हिन्दी जगत के स्वीकृत लोकप्रिय कवि हैं। हिन्दी ग़ज़ल और गीत में जैसे उन्हें सिन्द्धी प्राप्त है। कवि-सम्मेलनों के मंच से लेकर लगभग सभी पत्र-पत्रिकाओं में उनके यश का आलोक फैला हुआ है। भारतवर्ष के बाहर अनेक देशों में उनके नाम और काव्य की प्रशंसा है। रचनाधर्म ही जैसे उनका जीवन है। लगभग पन्द्रह गीत और गजल संग्रहों के बाद अब उनका नया जनगीत-संग्रह 'नदी पसीने की नाम से हिन्दी प्रेमियों के हाथों में आ रहा है। मुझे विश्वास है कि हिन्दी-संसार इस संग्रह की भी पूर्ण स्वागत करेगा।
-भारत भूषण
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कुँअर आम आदमी की जुबान का कवि
डॉ० कुँअर बेचैन जन-जन के कवि हैं। भाषा और विषयवस्तु के कारण उनकी रचनाएँ लोकप्रिय होती रही हैं। आज के कवियों में बेचैन का अपना एक विशिष्ट स्थान है। उनके गीतों और गजलों में आम आदमी की जुबान को अभिव्यक्ति मिली है। उनकी अनेक विधाओं में अनेक उपलब्धियाँ हैं। प्रस्तुत गीतों में उनकी जनवादी छवियाँ देखते ही बनती है। मैं उनकी निरन्तर उन्नति की कामना करता है।
- पद्मश्री गोपाल दास नीरज
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कुँअर की कविता गंगा की तरह
जब तक हिमालय जैसा पर्वत नहीं, तब तक गंगा जैसी पवित्र नदी नहीं निकलती । कवि की कविता उसके व्यक्तित्व की द्रवित भावना है। डॉ० कुँअर बेचैन की कविता उनके व्यक्तित्व की पहचान है। उनका व्यक्तित्व यदि हिमालय है तो उनकी कविता गंगा नदी पसीने की' नामक संग्रह मे डॉ० वेचैन की कविता आम आदमी के दुख-दर्द, उसके संघर्ष और उसकी जिजीविषा के रूप में मुखरित हुई है।
-उदयप्रताप सिंह
कवि, सांसद राज्यसभा
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कुँअर का लेखन तराशे हुए हीरे की तरह
डॉ० कुँअर बेचैन का लेखन तराशे हुए हीरे की तरह अनेक पहलुओं वाला है। उसमें से कब किस रंग का
किरणपुंज परावर्तित हो जाए, कुछ नहीं कहा जा सकता। जनगीतों का यह संग्रह कुंजर के उस सृजनकोश की मंजूषा को खोल रहा है, जिसमें जरूरी संवेदन की पूँजी संग्रहीत है, सभी के भावात्मक लाभांश के साथ। मेरा विश्वास है कि इस मधुपर्क का जन-जन याचक की मुद्रा में अँजुरी भर-भर कर पान करेगा। कोटि-कोटि शुभकामनाएँ।
-सोम ठाकुर
बेचैन एक प्रतिभाशाली गीत-कवि
पिछले पचास-साठ वर्षों में गीत ने अनेक करवटें ली हैं और प्रत्येक करवट पर अपने तेवर बदले हैं। गीत ने आम आदमी की भावुकता को गाया तो उसकी पीड़ा का भी उतनी ही गहनता के साथ लेखांकन किया। गीत ने प्रगतिशील गीत, प्रयोगवादी गीत, नवगीत, प्रगीत, अनुगीत और न जाने कितने प्रकार से स्वयं को अभिव्यक्त किया। मूलतः गीत में लोक स्पर्श के साथ जनगीत भी प्रकट हुआ, जिसमें मजदूर, किसान, शोषित तथा अन्याय पीड़ित मनुष्य की व्यथा व्यक्त हुई है। डॉ० कुँअर बेचैन एक ऐसे प्रतिभाशाली गीत कवि हैं, जिन्होंने प्रत्येक गीत विधा को जिया है और अपनी प्रखर प्रतिभा से महिमामंडित भी किया है। जनवादी गीतों में भी उनकी भाषा-शैली एक नया रंग-रूप लेकर उपस्थित हुई है। मैं समझता हूँ गीत प्रेमियों के लिए उनका प्रस्तुत संग्रह भी अनुभूति और नयी अभिव्यक्ति के साथ मानसिक संतुष्टि और उ…
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अनकही पीड़ाओं के गायक है कुँअर बेचैन
डॉ० कुँअर बेचैन हमारी पीढ़ी के ऐसे कवियों में से हैं जिन्होंने अपनी कविता को या शिल्पगत आहों से दूर रखकर उसे जनभावनाओं और लोकभाषा का प्रतीक बना दिया है। लोकप्रिय हो जाने से ही कोई कवि जनकवि नहीं हो जाता डॉ० बेचैन उन कतिपय जनकवियों ने भी मन है जिसकी रचनायें जन-जन तक पहुंची ही नहीं बेचैन के गीत मध्य वर्ग की आशा और निराशाल तक सीमित नहीं रहे हैं, उनमें ऐसे वर्ग के अंदेशे और चिन्ताएँ भी है, जो सदियों हाशिये पर रहे हैं। वह जनता के नहीं अनाओं के गायक है। अतः उन्हें महज ही सशक्त जन कहा जा सकता है।
बालस्वरूप राही
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हिन्दी जगत के स्वीकृत लोकप्रिय कवि
डॉ० कुँअर बेचैन हिन्दी जगत के स्वीकृत लोकप्रिय कवि है। हिन्दी ग़ज़ल और गीत में जैसे उन्हें सिद्धी प्राप्त है। कवि सम्मेलनों के मंच से लेकर लगभग सभी पत्र-पत्रिकाओं में उनके यश का आलोक फैला हुआ है। भारतवर्ष के बाहर अनेक देशों में उनके नाम और काव्य की प्रशंसा है। रचनाधर्म ही जैसे उनका जीवन है। लगभग पन्द्रह गीत और गजल-संग्रहों के बाद अब उनका नया जनगीत-संग्रह 'नदी पसीने की नाम से हिन्दी प्रेमियों के हाथों में आ रहा है। मुझे विश्वास है कि हिन्दी-संसार इस संग्रह का भी पूर्ण स्वागत करेगा।
-भारत भूषण
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परिमाण और गुणवत्ता का गणिकांचन संयोग
डॉ० कुँअर बेचैन देश के अग्रिम पंक्ति के कुछ गिने-चुने कवियों में से एक हैं। हिन्दी गजल के सफल सर्जक के रूप में भी उनका नाम आदर से लिया जाता है। उनका रचना साम्राज्य हजारों पृष्ठों में फैला है। कुंअर भाई को छोड़कर कविताः मैं परिमाण और गुणवत्ता का ऐसा मणिकांचन संयोग अन्यत्र दुर्लभ है। इस नये संग्रह मैं उनके जनवादी गीतों के तेवर देखते ही बनते हैं। कोटिशः बधाइयाँ।
-किशन सरोज
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डा. कुँअर बेचैन ने गीत-नवगीत, गवाल- दोहा और अन्य काव्य-विधाओं में सक्रिय लेखन के द्वारा अपनी एक विशिष्ट पहचान निर्मित की है। अपनी पुस्तकों के माध्यम से वे अधिक पढ़े जाते हैं या काव्य-मंचों से अधिक सुने जाते हैं, यह तय कर पाना कठिन है। अपने नए गीत-संग्रह ' दिन दिवंगत हुए' के गीतों में कव्य और शिल्प दोनों ही दृष्टियों से काव्य जगत् में डा. वचन के अन को कभी भुलाया नहीं व उनके कौशल का अनुभव किया जा सकता है।
- शिशुपाल सिंह निर्धन
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