महाकवि हरिवंशराय बच्चन और मेरे पिताजी प्रख्यात कवि व साहित्यकार प्रोफेसर स्व दिनकर सोनवलकर जी घनिष्ठ मित्र थे।इन दोनों कवियों की पहली मुलाकात का प्रसंग भी बहुत मार्मिक है।1960 के आसपास जबलपुर में एक कविसम्मेलन सेठ गोविन्ददास जी के सौजन्य से आयोजित किया गया था।इसमें 53 वर्षीय बच्चन जी और 28 वर्षीय पिता स्व दिनकर जी एक ही मंच पर थे।बच्चन जी ने उनकी पहली पत्नी स्व श्यामाजी की याद में एक दुखांत कविता "साथी अंत दिवस का आया;"लिखी थी।दिनकरजी ने उसी मंच पर यही कविता गीत रूप में स्वरबद्ध कर अपने स्वर में हारमोनियम पर ऑंखे बन्द कर तल्लीनता से प्रस्तुत की।जैसे ही गीत समाप्त कर दिनकर जी ने आंखें खोली ,देखा बच्चन जी की आँखों से अविरल अश्रुधारा बह रही है ओर वे दिनकर जी को एकटक देख रहे हैं।दिनकर जी अपराधबोध से ग्रस्त हो गए कि मैंने ये गीत सुनाकर महाकवि को दुखी कर दिया।अगले ही पल बच्चन जी उठे और दिनकरजी को गले से लगाकर कवि सम्मेलन के बाद अपने साथ होटल में ले गये जहाँ वे ठहरे हुए थे।वहां परिचय हुआ और पतों व एक दूसरे के काव्य संग्रहों का आदान प्रदान हुआ। उस समय दिनकरजी विवाह के बाद खण्डवा कॉलेज की शासकीय नौकरी दमोह के मोह में छोड़कर दमोह के निजी स्कूल में अध्यापक हो गए थे।ओशो उनके सहपाठी थे ही। अब बच्चन जी और दिनकरजी में पत्रों के नियमित आदान प्रदान का सिलसिला जो आरम्भ हुआ वो 2000 तक दिनकरजी की मृत्यु के कुछ साल पहले तक चलता रहा।बच्चन जी दिनकरजी के पैतृक घर दमोह भी आये और 1966 में रतलाम कॉलेज के गेदरिंग में दिनकरजी के अनुरोध पर मुख्य अतिथि बतौर शामिल हुए व मधुशाला सुनाई।इस कार्यक्रम में हारमोनियम दिनकर जी ने बजाई।बालकवि बैरागी इस कार्यक्रम में उपस्थित थे।दिनकर जी रतलाम कॉलेज में 64 से 70 तक रहे व 70 से 2000 तक मृत्यु पर्यंत जावरा में रहे जहां कॉलेज की लाय ब्रेरी,विश्राम गृह मार्ग दो स्कूल एक तालाब उनके नाम पर है।रतलाम में 67 में पुनः बच्चन जी एक रात 12 बजे दिनकरजी के स्टेशन रोड निवास पर ट्रेन लेट होने से आये और उनकी पत्नी का नाम मीरा से मीनाक्षी रखा व दो वर्षीय बिटिया प्रतीक्षा के स्लेट पर चिड़िया बनाकर 51 रुपए आशीर्वाद स्वरूप दिये। उसी समय अमिताभ के निर्माणाधीन घर का नाम भी संयोगवश प्रतीक्षा रखा गया।एक बार दिनकरजी72 में चकल्लस कार्यक्रम के दौरान बच्चन जी के निवास पर गए तब भोजन उपरांत बच्चन जी के निर्देश पर अमिताभ ने सितार पर कुछ धुन सुनाई।
बच्चनजी ने अपने समस्त संग्रह दिनकरजी को भेंट किये व पत्रों में अपनी भावनाएं व वेदना भी व्यक्त करते थे।यहाँ तक कि तत्समय अमिताभ और रेखा के प्रेम प्रसंग को लेकर उतपन्न परिस्थितियों पर भी बच्चन जी पिता दिनकरजी से पत्रों में शेयर करते थे।उस समय फोन दुर्लभ व मोबाइल तो थे ही नहीं।कुछ े पत्र दुष्यंत स्मृति संग्रहालय भोपाल में देखे जा सकते हैं।
ये पीठिका इसलिये आवश्यक थी ताकि अमिताभ जी से मेरी मुलाकात की प्रस्तावना स्पष्ट हो सके।बचपन से ही मैं भी महानायक की फिल्मों का मुरीद था अब भी हूँ और गर्व से मित्रों परिचितों को उनसे और उनके पिता से अपने पिता के सम्बन्धों को बताया करता था।एक स्वाभाविक इच्छा थी कि महानायक से इन सम्बन्धों,स्मृतियों ,संस्मरणों ,पुराने पत्रों फोटोज के साथ भेंट की जाए।महाकवि बच्चन के 2003 में अवसान पर मैंने संवेदना पत्र के साथ दिनकरजी व महाकवि के कुछ पत्र व फोटोज अमिताभ जी को प्रसंगवश भेजे।आश्चर्यजनक रूप से 15 दिन बाद अमिताभ जी का प्रिंटेड उत्तर आया जिसमें उन्होंने अपने हाथ और हस्ताक्षर से पुनश्चः करके ये लिखा कि आपके पिताजी और आपके
सम्बन्ध बाबूजी और मेरे परिवार से थे ये स्मरण कर मन भर आया।पुरानी स्मृतियां छवियाँ साकार हो गई।कभी मुम्बई आएं तो मिलें।
पत्र के साथ बच्चन जी का फोटो जिस पर उनकी पंक्तियाँ लिखी थी "मैं खुद को छुपाना चाहता तो जग मुझे साधु समझता।शत्रु मेरा बन गया है छल रहित व्यवहार मेरा ",
इस पत्र के बाद महानायक से मिलने की उत्कंठा अधिक बढ़ गई 2009 में उज्जैन पदस्थापना के बाद लगभग 2014से मैंने महानायक के पते पर मिलने की तिथि हेतु सतत पत्राचार आरम्भ किया।कहीँ से उनके निवास का नम्बर मिलने पर कई बार फोन भी लगाए ।हमेशा उनकी सचिव रोज़ी यही बोलती कि आपके पत्र सर को भेज दिये हैं जैसे ही वे समय देंगे आपको सूचित करेंगे।ऐसा लगातार महीनों तक चलता रहा।इसी बीच उज्जैन में स्व शिव शर्मा जी के निवास पर व्यंग्यकार स्व शरद जोशी के छोटे भाई लेखक स्व रोमेश जोशी जी से 2017 में भेंट हुई।वे भी दिनकरजी के मित्रवत थे।उन्होंने मुझे उनका और शिव शर्मा जी द्वारा लिखित उपन्यास हुजु रे आला भेंट किया।अनायास इसके कुछ दिन बाद फेसबुक पर महानायक को ये उपन्यास भेंट करते हुए रोमेश जी का फोटो देखा।मैंने उनसे ये रहस्य पूछा कि आप किस माध्यम से अमिताभ जी से मिल लिये।उन्होंने बमुश्किल बताया कि मेरे दामाद श्री पराग चाफेकर अमिताभ जी के फ़िल्म वितरण के पार्टनर हैं और उनके कारण ही ये सम्भव हुआ।बहुत प्रार्थना के बाद उन्होंने पराग जी का नम्बर दिया ।बस बातों बातों में पराग जी से अनुनय विनय अनुरोधों की लंबी श्रृंखला के बाद दो साल बाद जनवरी 2018 में पराग जी का संदेश आया कि अब आपकी मुलाकात का स्वप्न साकार होने के आसार दिख रहे है।मैं प्रफुल्लित हो गया।जनवरी के बाद अक्टूबर2018 आ गया।मैं पराग जी को परेशान करता रहा कि दादा कब मुलाकात होगी।यही रोज़ी मेडम उन्हें भी टालती रही।आखिर एक दिन 26 आकटूबर को पराग जी ने अमिताभ जी को उलाहना देते हुए बोल दिया कि आपको प्रतीक सोनवलकर से नहीं मिलना है तो साफ मना कर दीजिये।बस महानायक ने बोला तुम नाराज मत हो ।30 अक्टूबर को शाम साढ़े छह बजे उन्हें बुला ही लो। पराग जी का जब फोन आया मैं सिंहस्थ मेला भवन में विधानसभा चुनाव की मीटिंग में था। मेरी बाँछें खिल गई।खिलती भी क्यों नहीं बरसों पुराना स्वप्न जो साकार हो रहा था।मैं और मेरा बेटा एडवोकेट व कवि सार्थक सोनवलकर 30 अक्टूबर को विमान से ढाई बजे मुम्बई पहुंचे। पराग जी के साथ सवा 6 बजे जलसा में प्रवेश किया।वहाँ का सारा स्टाफ पराग जी से परिचित है ।कक्ष में बैठते ही चाय आई और सहायक ने बताया कि साहब का कोई विदेशी मेहमान इंटरव्यू ले रहे हैं और साहब आते हैं। ये कहकर वह चला गया।हमें लगा कम से कम 15 मिनिट तो लगेंगे ही। महानायक के समय की पाबंदी और अनुशासन देखिये कि हमारी चाय भी खत्म नहीं हुई और वे अकेले ही कक्ष में तीन मिनिट यानी 6बजकर 29 मिनिट पर इन्टरव्यू छोड़कर दिये समय के एक मिनिट पहले आ गये।
आते ही पराग जी को मुस्कुराते हुए धौल जमाई कि तू बहुत परेशान करता है। पराग जी ने मेरी ओर इशारा किया बोले इन्हीं के लिये आपको परेशान किया।मैंने और पुत्र ने उनके चरण स्पर्श किये और महाकाल का प्रसाद,भस्मारती की भस्म,हरिओम जल ,पीला दुशाला ,उज्जैन का नमकीन मिठाई उन्हें भेंट की।उनकी विनम्रता देखिए प्रत्येक वस्तु ध्यान से अपने हाथों में ली और ससम्मान ग्रहण कर मेज पर रखी।मैंने बच्चन जी की वही कविता जिसे सस्वर सुनकर वे पिता दिनकरजी से प्रभावित हुए थे,अपने स्वर में स्वरबद्ध कर उपरोक्त तमाम संस्मरणों सहित उन्हें भेंट की।वे भी अभिभूत हुए और यादों में खो से गये। प्रत्येक संस्मरण महानायक ने बिना हड़बड़ी के धैर्यपूर्वक सुना और गुना।महाकाल का दुशाला उन्होंने इसलिये नहीं पहना क्योंकि ठग्स ऑफ हिंदुस्तान की शूटिंग के स्टंट में उनके हाथ में चोट लगने से प्लास्टर बंधा था।फ़ोटो की बारी आई तो उन्होंने अपने तरीके से मेरा और सार्थक का हाथ पकड़कर अलग अलग कोणों से फ़ोटो खिंचवाए।पुत्र सार्थक ने जब मधुशाला की दो प्रतियों पर उनके ऑटो ग्राफ चाहे तो बोले दो पर क्यों ?पुत्र ने कहा एक मेरी और एक मित्र के लिये।उन्होंने सहर्ष ऑटो ग्राफ दिये और बेटे से पूछा तुम कहाँ रहते हो ,क्या कर रहे हो,क्या इरादा है आदि। इसी बीच मैंने उन्हें महाकाल व मध्यप्रदेश यात्रा का निमंत्रण दिया और स्मरण कराया कि कुली फ़िल्म की शूटिंग में आपके घायल होने पर महाकाल में भी प्रार्थना की गई थी।वे श्रद्धा से भावुक हो गये। इसके बाद उन्होंने पूछा और कुछ आप कहना चाहते हैं?हमें भी लगभग 25 मिनिट हो गए थे हमने कृतज्ञता ज्ञापित करते हुए इजाजत ली और पराग जी को विशेष धन्यवाद देकर गौरवपूर्ण यादों के साथ मुंबई एयरपोर्ट पहुंचे और रात साढ़े ग्यारह बजे उज्जैन लौटे।
कुल मिलाकर महानायक से मिलना असम्भव जैसा ही है और यदि पिता दिनकरजी के संदर्भ व पराग जी की पहल न होती तो मिलना असम्भव ही था।पराग जी ने बताया कि 77 वर्ष की अवस्था में भी महानायक सुबह साढ़े चार बजे उठकर योगा जिम के बाद काम पर निकल जाते हैं और देर रात 12 बजे के बाद आकर प्रशंसकों के कमेंट पर उत्तर देते हैं और नियमित स्वाध्याय के बाद ही केवल चार घण्टे विश्राम करते हैं।उनकी ऊर्जा व जीवटता दुर्लभ है।आगामी तीन वर्षो तक इतना काम है कि कोई डेट उपलब्ध नहीं है।महानायक को उनके 78 बसन्त पूर्ण होने पर बधाई शुभकामनाएं अभिनन्दन।वे इसी प्रकार स्वस्थ सक्रिय रहें और अपने अभिनय से देश और विश्व को आल्हादित आनन्दित करते रहें।
प्रतीक सोनवलकर की स्मृति से
संयुक्त आयुक्त क्षेत्रीय ग्रामीण विकास व पंचायत राज प्रशिक्षण केंद्र इंदौर
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