( सुरेन्द्र लाओ बीड़ी पिलाओ )
बात उन दिनों की है जब मैं एल-एल . बी प्रथम वर्ष में था तभी से मुझे सारिका मासिक पत्रिका का नियमित पाठक हो गया था मुझे सारिका की कहानियाँ बेहद पसंद आती थीं उन्हीं दिनों कमलेश्वर जी जो सारिका के सम्पदक थे ने कहानी का एक आंदोलन चलाया था " समांतर कहानी " और कहानीकारों का एक संघ बनाया था नाम था " समांतर लेखक संघ " सारिका की कहानियाँ पढ़ते पढ़ते मुझे ऐसा लगता था कि मैं भी ऐसी कहानियाँ लिख सकता हूँ और एक दिन मैं कागज़ क़लम लेकर बैठ गया और एक ही सिटिंग में एक कहानी लिख दी शीर्षक रखा "अगिहाने " और बिना कुछ सोचे समझे सारिका में भेज दी कुछ समय बाद कमलेश्वर जी का हस्तलिखित पत्र मिला " प्रिय भाई
कहानी मिली पसंद आई इसे हम सारिका के नवलेखन अंक 9 में प्रकाशित करेंगे तुम अति शीघ्र अपना फोटो और संक्षिप्त परिचय भेज दो
कमलेश्वर "
मैं तो मारे खुशी के उछल ही पड़ा पत्र लेकर अपने मित्र ओम प्रकाश के पास कासगंज गया उसे पत्र दिखाया मेरे लिए यह बहुत ही बड़ी उपलब्धि थी कि कमलेश्वर जी का हस्तलिखित पत्र उसने पत्र पढ़ा और फाड़ दिया मैं हतप्रभ रह गया बहुत ही गुस्सा हुआ पर ओम प्रकाश बोला ये क्या खुशी की बात है खुशी की बात तो तब होगी जब लोग तुम्हारे पत्र को ऐसे ही दिखाएं
बहरहाल मैं घर वापस आ गया सन 1975 में सारिका के नवलेखन अंक में "अगिहाने " प्रकाशित हुई उसकी बहुत ही चर्चा हुई विशेष रूप से बिहार में कई भाषाओं में उसके अनुवाद के लिए पत्र आए मेरी तो प्रसन्नता की सीमा ही नहीं थी
कुछ दिनों बाद कमलेश्वर जी का फिर एक पत्र मिला कि उक्त तारीखों में बिहार में राजगीर में समांतर लेखक संघ की त्रिदिवसीय गोष्ठी है तुम आ सकते हो तो आ जाओ मैं तो फूला न समाया
उक्त समय पर राजगीरि पहुंच गया राजगीरि के एक गेस्टहाउस के सामने लॉन पर लेखक लोग बैठे हुए थे जैसे ही मैं पास पहुंचा कमलेश्वर जी ने सुदीप से पूछा कि बताओ ये कौन हैं सुदीप जी ने कहा कि ये " अगिहाने " के लेखक सुरेन्द्र सुकुमार हैं मैं तो दंग रह गया पर शीघ्र ही समझ में आ गया कि मेरे काले लंबे घुँघराले बालों के कारण मुझे पहचान लिया है ख़ैर मैं भी गोष्ठी में शामिल हो गया उन दिनों मैं नया नया साम्यवादी हुआ था सो बढ़ चढ़ कर हिस्सा ले रहा था गोष्ठी में कमलेश्वर जी बार बार कहानियों में शोषक को नँगा करने और शोषित को संगठित होकर शोषक के विरुद्ध लड़ने की बात कर रहे थे मुझे भी बहुत अच्छा लगा गोष्ठी के बाद सब लोग एक दूसरे से मिलने लगे
बिहार से आए एक पाठक के के सिंह जो पी डब्ल्यू डी में बड़े ठेकेदार थे ने मुझे एक एम्बेसडर कार एक ड्राइवर और डिग्गी में रखा शराब का एक कार्टून मेरे हवाले किया और खुद वापस पटना चले गए अब तो मेरे मज़े ही मज़े थे उस सम्मेलन में मेरे दो घनिष्ठ मित्र बन गए थे ह्रदय लानी और अंजनी चौहान अंजनी डॉक्टर थे वो मेरे एक रिश्ते के भांजे के मित्र थे इसलिए वो मुझसे मामा श्री कहने लगे हम लोगों के शौक भी समान थे सो खूब मज़े आ रहे थे तीन दिन लगातार गोष्ठी में गर्मागर्म बहस होती रहीं कमलेश्वर जी के बोलने का अंदाज ही निराला था " सवाल यह नहीं है कि शोषण कौन कर रहा है सवाल यह भी नहीं है कि शोषित कौन है सवाल यह है कि हमें शोषित वर्ग को जाग्रत कैसे करना है आदि आदि " मेरे आस पास तो पीने वाले मित्रों का तांता लगा रहता था तीन दिन बहुत ही मज़े आए
फिर मैं वापस घर लौट आए घर आते ही मुझे कमलेश्वर जी का पत्र मिला कि किन्हीं ज़िमीदार ने मानहानि का मुक़दमा किया है उसमें पार्टी मुझे सम्पदक होने के नाते कमलेश्वर जी और मुद्रक प्रकाशक श्री कृष्ण गोविंद जोशी को बनाया है उक्त तारीख़ को तुम्हें एटा कोर्ट में हाज़िर होना है तुम्हें भी सम्मन मिला होगा इन बातों में पड़ना ठीक नहीं है तुम जल्दी से जल्दी कोई रास्ता निकाल कर समझौता करने की कोशिश करो मैं तुम्हें मेरे मित्र बलवीर सिंह रंग का पता दे रहा हूँ उनसे मिल कर केस को रफ़ा दफ़ा करो "
मेरे पास कोई सम्मन नहीं आया था उन्होंने रुकवा दिया था रंग जी को मैं अच्छी तरह से जानता था मैं उनसे मिला भी वो बोले " कमलेश्वर का मेरे पास भी पत्र आया है
ठाकुरों की यह हिम्मत कि एक साहित्यकार पर मुक़दमा करें तुम चिंता मत करो मैं उक्त तारीख पर कोर्ट में पहुंच जाऊंगा मैंने पता लगाया तो पता चला कि इस मुक़दमे में हमारे ख़िलाफ़ 18 एडवोकेट जिले के डीएम और एस एस पी भी गवाह थे हमारा मुक़दमा कोई लेने को तैयार ही नहीं था एक सीनियर एडवोकेट अश्वनी कुमार ने हमारा केस लिया केस श्री एस के सक्सेना की कोर्ट में था
मैं उक्त तारीख को कोर्ट पहुंचा तो देखा कि वाररूम में रंग जी वकीलों से घिरे बैठे थे और कह रहे थे कि कल के लड़के की इतनी हिम्मत कि ठाकुरों से टक्कर ले
रंग जी भी ठाकुर थे आज उनका ठाकुर जग गया था मैं उल्टे पाँव लौट आया
मैं हर तारीख पर जाता रहा रात को अश्वनी भाई साहब के घर पर ही रुकता था
एक दिन मैं नहर पर पड़ाव पर बैठा था मेरे साथ बल्लू भी था हम लोग शराब पी रहे थे कि बल्लू इलाके का अपराधी था क़त्ल किडनैपिंग उसका पेशा था मैं उन दिनों एल एल बी के अंतिम वर्ष का छात्र था इसलिए इलाके के लोग मुझे वकील साहब कहने लगे थे
अचानक बल्लू बोला कि वकील साहब जे डॉक्टर को छोरा कौन है मैंने पूछा क्यों क्या हुआ तो बोला कि कुँवर साहब ने 5000 ₹ दिए हैं बाके क़त्ल के लै बाकी 20000 हजार बाद में देंगे " मैंने कहा कि "ठीक है डॉक्टर को छोरा तो मैं ही हूँ मार डालो तो बोला " का कई ? " मैंने कहा "हाँ " तो बोला "अच्छा सारो मोई से मेरे यार कूँ मरवाय रहो है " अब देखत हूँ हरामजादे को " और उठ कर कुँवर साहब की हवेली के दरवाज़े पर जाकर सैकड़ों गालियाँ सुनाईं उस समय रात के 10 बजे थे
हर तारीख पर कोर्ट में सैकड़ों लोग जमा होते थे कुछ समय बाद एस के सक्सेना ने केस छावड़ा साहब के कोर्ट में ट्रांसफर कर दिया क्योंकि एस के सक्सेना धर्मवीर भारती के मौसेरे भाई थे उन्होंने सोचा कि कमलेश्वर और भारती मित्र हैं तो क्यों इस झंझट में पड़ा जाए
तारीख पर तारीख पड़ती रहीं और हम हर तारीख पर जाते रहे एक वर्ष बाद सारिका के एक अंक में सम्पादक और प्रकाशक की ओर से खेद प्रकाशन किया गया कि अगिहाने कहानी के प्रकाशन से यदि किसी की भावनाओं को ठेस पहुँची हो तो हमें खेद है और कमलेश्वर जी और श्री कृष्णगोविंद जोशी मुक़दमे से अलग हो गए अब रह गया मैं अकेला मैं लड़ता रहा
अगिहाने के प्रकाशित होने के कुछ समय पश्चात मेरी कहानी " अपने जैसे लोग " धर्मयुग में स्वीकृत हुई पर उसके साथ एक फॉर्म आया उसमें लिखा था कि इस कहानी का संपादक प्रकाशक कोई लेना देना नहीं है यह परंपरा तभी से शुरू हुई
अब यह मुक़दमा छावड़ा साहब अदालत में चलने लगा मैं भी बहुत थक चुका था जब उस मुक़दमे की आखिरी हियरिंग थी उस दिन मुझसे पूछा गया कि आप कहते हैं कि कहानी काल्पनिक है तो इन्होंने आपके ऊपर मुक़दमा क्यों दायर किया मैंने कहा कि इनकी बहन से मेरा अनैतिक सम्बंध है एक दिन इन्होंने मुझे रंगे हाथ पकड़ लिया इसलिए क्षुब्ध होकर इन्होंने मुझ पर मुक़दमा दायर कर दिया अब क्या था कोर्ट में तो सन्नटा खिंच गया छावड़ा साहब ने उनकी बहन के नाम सम्मन जारी किया कि वो कोर्ट में आकर बताएं कि सच्चाई क्या है
लौटते समय कुँवर साहब ने मुझसे कहा कि तुमने ऐसा क्यों कहा मैंने कहा कि जब आपने बल्लू को मुझे मारने के लिए रुपये दिए थे तब आपने बहुत अच्छा किया था
उनकी बहन यदि कोर्ट में पेश होती तो बहुत ही बदनामी होती इसलिए उन्होंने बहन को कोर्ट में पेश नहीं किया कोर्ट का दवाब पड़ने लगा हार कर उन्होंने मुक़दमा वापस ले लिया उस दिन छावड़ा साहब ने हमें डिनर पर बुलाया जब हम यानिकि मैं और अश्विनी भाई साहब खाने पर उन्होंने कहा कि हम तो बहुत पहले ही यह मुक़दमा खारिज़ कर देते फर्स्ट ऑफेंडर की धारा में इसमें यह होता है कि यदि किसी ऐसे व्यक्ति पर कोई केस चलता है जिसका भविष्य उज्जवल हो और उसका पहला केस हो तो उसे वार्निंग देकर छोड़ दिया जाता है
पर हम तो कमलेश्वर को देखना चाहते थे
अगिहाने कहानी से हमसे बहुत से पाठक जुड़ गए थे उनमें एक था मुंबई का मेहरू गोविंद वो चित्रकार भी था उसके लगातार पत्र मेरे पास आते थे एक दिन उसका पत्र आया कि अमुक तारीख को उसकी शादी है और तुम्हें ज़रूर आना है यदि तुम नहीं आए तो मैं शादी नहीं करूंगा इसे तुम मज़ाक़ मत समझना ये चेतावनी है मजबूरी में मुझे जाना पड़ा मैं पहली बार मुंबई जा रहा था वो मुझे दादर स्टेशन पर मिल गया वो चेम्बूर में सिंधी कैंप में रहता था उसने एक फ्लैट मेरे लिए खाली करबा लिया था मैं उस में रुक गया ढेर सारी बातें होती रहीं
उन दिनों केवल दूरदर्शन ही था और दूरदर्शन पर कमलेश्वर जी का एक कार्यक्रम बहुत ही पॉपुलर था नाम था " परिक्रमा " सो कमलेश्वर जी को लोग नाम से ही नहीं शक़्ल से भी पहचानते थे मुझे कमलेश्वर जी से मिलने जाना ही था तो मेहरू मुझसे बोला मैं भी चलूंगा और शादी का कार्ड दूँगा वो अगर आ जाएंगे तो मज़ा आ जाएगा हम दोनों सारिका के कार्यक्रम में गए वो भी बहुत प्रसन्न हुए मेहरू ने कॉर्ड दिया भाई साहब ( कमलेश्वर ) ने वायदा किया कि आऊंगा और वो आए भी शादी में तो चार चांद लग गए सब भाई साहब के प्रति आकर्षित थे ऑटोग्राफ ले रहे थे
वो भी बहुत सहजता से सबसे मिल रहे थे
उस समय पहली बार मुंबई मुझे मेहरू ने घुमाया उसके बाद तो असंख्य बार मुंबई जाना हुआ पर जो मुंबई उस बार देखना हुआ वो तब ही हुआ
दिन बीतते गए कुछ समय बाद दूसरा
समांतर लेखक सम्मेलन गुजरात के अंजार में हुआ मैं भी शामिल हुआ तबतक तो मेरी बहुत कहानियाँ सारिका और धर्मयुग में प्रकाशित हो चुकी थीं और मेरा नाम काफी चर्चित हो चुका था अंजार में भी बहुत लेखक शामिल हुए थे उनमें कुछ हमारे पुराने मित्र भी थे जैसे कि अंजनी चौहान वहाँ भी जोरदार बहसें होती रहीं एक दिन शाम को पीने खाने के बाद हम लोग काठ की सीढ़ियों से नीचे उतर रहे थे कि मेरा पैर लड़खड़ाया पीछे से किसी ने कहा कि देखो यू पी गिर रहा है कोई संभालो नीचे खड़े भाई साहब ने कहा कि कोई बात नहीं मैं यू पी से हूँ मैं संभाल लूंगा मेरे पीछे हिमांशु जोशी थे फिर वो लड़खड़ाए मैंने कहा कि मेरे ऊपर तो पहाड़ गिर रहा है अब कौन संभालेगा नीचे खड़े डॉक्टर विनय ने कहा कि यहाँ समांतर सम्मेलन के लिए आए हैं या प्रांत वाद के लिए हम लोगों का नशा पल भर में उतर गया
उस सम्मेलन में मराठी भाषा के कुछ बड़े दलितसाहित्य के लेखक भी शामिल हुए थे जैसे
दया पंवार , बाबूराव बागुल , आदि और दाउदी बोहरा समाज के विद्रोही नेता असगर अली इंजीनियर उस बार हम सब लोग कच्छ का रन देखने भी गए बहुत ही मज़ा आया
उसके बाद हम जब भी मुंबई जाते भारती जी और कमलेश्वर जी से अवश्य मिलते थे दोनों को मैं भाई साहब ही कहा करता था
उन दिनों धर्मयुग और सारिका में मेरी कहानियाँ निरंतर प्रकाशित हो रही थीं
उसके बाद कमलेश्वर जी दिल्ली दूरदर्शन में एडिशनल डायरेक्टर जनरल के पद पर आ गए
कासगंज के मेरे घनिष्ठ मित्र दिनेश अवस्थी जो उन दिनों डिग्री कॉलेज में इकनॉमिक्स के लेक्चरर थे जो अब अहमदाबाद में एक यूनिवर्सिटी के वाइस चांसलर हैं बहुत बार कहते थे कि हमें कमलेश्वर जी से मिलवा दो उनके बार बार कहने पर हम दिल्ली दूरदर्शन उनके कार्यालय में गए वहाँ बहुत से लोग उनसे मिलने के लिए बैठे थे हमने भी अपनी पर्ची भिजवा दी हमने सोचा था कि पर्ची देखते ही वो हमें बुलवा लेंगे पर हुआ उल्टा वो दो दो लोगों को एक साथ बुलवा रहे थे पर सब लोग जाते रहे हमारा नम्बर ही नहीं आया मैं बहुत ही झुंझला रहा था अंत में हमारा नम्बर आया तबतक सब लोग जा चुके थे हमने देखा कि भाई साहब पाइप पी रहे थे मेरे मुंह से बेसाख्ता निकला अरे वाह भाई साहब बीड़ी से सिगरेट सिगरेट से सिगार और सिगार से अब पाइप आपने तो बहुत ही तरक्की कर ली है " तो वो बोले " इसीलिए तो हमने तुम्हें सबसे बाद में बुलाया है तुम्हारे मुंह में जो आता है बक देते हो कहो कैसे आना हुआ ? " मैंने कहा बस मिलने के लिए ये मेरे मित्र हैं दिनेश अवस्थी ये आपसे मिलने के बहुत इच्छुक थे फिर उन्होंने चाय आदि मंगवाई हम लोग मिल कर चले आए मुलाक़ात बहुत अच्छी रही
उसके बाद वो जब भी अलीगढ़ किसी गोष्ठी में आते तो गोष्ठी के बाद में मेरे पास आते और आते ही सुरेन्द्र लाओ बीड़ी पिलाओ जरूर कहते और मैं दो बीड़ी सुलगाता एक अपने लिए एक उनके लिए और यह सिलसिला उनके जाने तक चलता रहा
ऐसे थे हमारे भाई साहब कमलेश्वर जी
-सुरेंद्र सुकुमार की स्मृति से
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