‘क़िस्से साहित्यकारों के’ - ‘हिंदी से प्यार है’ समूह की परियोजना है। इस मंच पर हम  साहित्यकारों से जुड़े रोचक संस्मरण और अनुभवों को साझा करते हैं। यहाँ आप उन की तस्वीरें, ऑडियो और वीडियो लिंक भी देख सकते हैं। यह मंच किसी साहित्यकार की समीक्षा, आलोचना या रचनाओं के लिए नहीं बना है।

हमारा यह सोचना है कि यदि हम साहित्यकारों से जुड़े संस्मरण और यादों को जो इस पीढ़ी के पास मौजूद है, व्यवस्थित रूप से संजोकर अपनी आने वाली पीढ़ी को दे सकें तो यह उनके लिए अनुपम उपहार होगा।



बुधवार, 13 नवंबर 2024

सावित्री बाजपेयी

 आज 7 अक्टूबर आदरणीय माँ की पुण्यतिथि है । ना जाने कितनी यादें चलचित्र की भांति घूम रही हैं ।मैं सबसे छोटी थी और हर समय उनके पीछे पीछे लगी रहती थी ।हमारे घर में राजनेताओं, कवियों ,लेखकों व साहित्यकारों का आना जाना लगा रहता था । कुछ तो मुझे याद आ रहे हैं,श्रीमान जवाहरलाल जी नेहरू,श्रीमती इंदिरा गांधी जी ,श्रीमान द्वारिका प्रसाद जी मिश्र , पंडित श्री शंभूनाथ जी शुक्ला , पंडित श्री गोविंद बल्लभ जी पंत ,श्रीमान गोविंद नारायण सिंह जी, श्रीमान गोपाल शरण सिंह जी, श्रीमान श्यामाचरण जी शुक्ल, श्रीमान कमलापति त्रिपाठी जी ,डॉ श्रीमान राजेंद्र प्रसाद जी ,श्रीमान कामराज नाडर जी, श्रीमान अर्जुन सिंह जी ,श्रीमान शंकर दयाल जी शर्मा,श्रीमान सवाई सिंह जी सिसोदिया ,सुश्री डॉ सुशीला नैयर जी,आदरणीया सुचेता कृपलानी जी,श्रीमती विजयलक्ष्मी पंडित,श्रीमान जगजीवन राम जी ,श्रीमान बिनोबा भावे जी, श्रीमान भगवान दास जी माहौर (जो श्रीमान चन्द्रशेखर जी के बचपन के मित्र व काकोरी कांड में उनके साथ थे। मेरे विवाह के एक वर्ष पहले सपत्नीक आये थे व दिन भर रहे थे मेरे विवाह में आने के लिये  कहकर गये थे पर कुछ महीने बाद ही उनकी मृत्यु हो गयी थी )श्रीमान हरिदेव जोशी जी,श्रीमान कुम्भा राव जी आर्य ,श्रीमान सुखाड़िया जी, और भी ना जाने कितने लोगों का आना हुआ करता था । आदरणीय डैडी जी बताते थे कि आपके विवाह के पहले जब मैं जयपुर जाता था तब जोशी जी या कुम्भाराव जी का मेहमान होता था ।पंडित बनारसीदास जी चतुर्वेदी ,पंडित विद्यासागर मिश्रा जी, श्रीमान डॉ शिवमंगल  सिंह सुमन जी,  श्रीमान डॉ धर्मवीर भारती जी , श्रीमान मैथिलीशरण  जी गुप्त ,सुश्री महादेवी वर्मा जी ,श्रीमान वृंदावन लाल जी वर्मा , श्रीमान हजारी प्रसाद जी द्विवेदी,श्रीमान सूर्यकांत निराला जी,श्रीमान कमलेश्वर जी,श्रीमान इंदीवर जी(आप डैडी जी के साथ स्वतंत्रता संग्राम में जेल में साथ भी रहे और साल में एक बार डैडी जी मिलने घर आया करते थे।),श्रीमान मनहर उधास जी(वो एक बार ही आदरणीय इंदीवर जी के साथ आये थे)।घर में सदैव चार पांच भोजन बनाने वाले लगे रहते थे व कई सहायक लोग भी रहते थे फिर भी माँ कुछ व्यंजन अपने हाथ से बनाती थी व आग्रह कर खिलाती थी ।हमारे गांव में एक लंगड़े भैया थे जो मांग कर खाते थे दोनों समय भोजन बनते ही उनकी थाली लेकर कोई भी सहायक देकर आता था और भी ना जाने ऐसे कितने लोग थे जिनकी मां को चिंता होती थी वे उनकी हर जरूरत पूरा करने की कोशिश करती थी । अभी मैंने आदरणीय डैडी के 100 वर्ष पूर्ण होने पर जो किताब निकाली गई थी( हमारे परिवार की तरफ से नहीं) उसमें मैंने पढ़ा कि आदरणीय डैडी जब गृह मंत्री थे और बंगला नंबर 2 में रहते थे उस समय भी कार्यकर्ताओं का व अन्य लोगों का तांता लगा रहता था । सभी के खाने-पीने की समुचित व्यवस्था माँ खुद करती थी । किताब के हवाले से वर्ष में 2 दिन 15 अगस्त व 26 जनवरी पर मां ने ऐसा नियम बना रखा था जिसमें वे डैडी के निजी सचिव ,निजी सहायक ,अंगरक्षक, चौकीदार ,चपरासी, बागवान ,सुरक्षाकर्मियों को अपने हाथ से बनाकर व स्वयं परोस कर खिलाती थीं और अपनी बनाई इस परंपरा को उन्होंने हमेशा निर्वाह किया।मैं सिर्फ 13 साल की थी तभी कैंसर ने मुझसे माँ को छीन लिया था । पर 13 वर्षों में जो मैंने  (हजारों लोगों ने देखा )देखा व महसूस किया उससे एक पूरा ग्रंथ लिख जाये । तभी तो उनकी पुण्यतिथि हो या कोई त्यौहार उनकी समाधि पर हम लोगों के जाने से पहले ही फूल मालाये , दीपक जल जाते थे । वह जाने कितने गांव की मम्मी थी ।कभी किसी को डांटते या अपशब्द बोलते नहीं देखा । घर में काम करने वाले सहायक लोगों को हमेशा जी कहकर बुलाती थी । और हम भाई बहनों को भी उन लोगों को जीजी भैया जी कहने के लिए कहा जाता था । एक घटना मुझे याद आ रही है उपन्यासकार श्रीमान वृंदावन लाल जी वर्मा अक्सर हमारे घर रुका करते थे वह अपना लेखन कार्य भी करते थे । सहायकों के होने के बाद भी मां एक रोटी हम से भी आग्रह कर परोसवाती थीं ।वह जाते वक्त तांबे की गोल इकन्नी हम दोनों बहनों को दे जाते थे ।ऐसे ही एक बुंदेलखंड के क्रांतिकारी महान पुरुष परम पूज्य पंडित परमानंद जी (चाचा जी )जिन्होंने अपनी 32 साल की सजा में 22 साल काले पानी की सजा काटी थी हमारे घर ही रुकते थे । हम लोग उनसे कहानियां सुनते थे उन्हें भोजन कराते समय माँ हमसे भी एक ना एक चीज परोसवाती थीं । माँ-बाप के दिये संस्कार और अच्छी आदतें ऐसे रच-बस जाती हैं कि हम चाहकर भी नहीं छोड़ पाते ।अब कई बार हमसे उम्र में छोटे कहते हैं आप हमें जी मत बोला करिये ,आप मत बोलिये आप बहुत बड़ी हैं हमसे पर चाह कर भी जी लगाये  बिना नहीं बोल पाते।

चित्र में माँ, कामराज जी व सुश्री डॉ सुशीला नैयर जी । माँ व पंडित द्वारिका प्रसाद जी,।माँ, कामराज जी व डैडी ।


रजनी मिश्रा की स्मृति से

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