‘क़िस्से साहित्यकारों के’ - ‘हिंदी से प्यार है’ समूह की परियोजना है। इस मंच पर हम  साहित्यकारों से जुड़े रोचक संस्मरण और अनुभवों को साझा करते हैं। यहाँ आप उन की तस्वीरें, ऑडियो और वीडियो लिंक भी देख सकते हैं। यह मंच किसी साहित्यकार की समीक्षा, आलोचना या रचनाओं के लिए नहीं बना है।

हमारा यह सोचना है कि यदि हम साहित्यकारों से जुड़े संस्मरण और यादों को जो इस पीढ़ी के पास मौजूद है, व्यवस्थित रूप से संजोकर अपनी आने वाली पीढ़ी को दे सकें तो यह उनके लिए अनुपम उपहार होगा।



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शुक्रवार, 7 अप्रैल 2023

अग्नि में तप्त कुंदन सी: महीयसी महादेवी

























   प्रायः मीरा और महादेवी जी की प्रेमभावना एवं विरह वेदना की तुलना की जाती है । प्रेम और विरह शाश्वत भावनाएँ होने का युगीन वैचारिकता से प्रभावित होती हैं । मीरा के समर्पण में जो आत्म विसर्जन है महादेवी में नहीं लगता। मीरा कहती है - जो पहरावै सोई पहरूँ….पराकाष्ठा है “बेचे तो बिक जाऊँ “  महादेवी जी का जयघोष - “ क्या अमरों का लोक मिलेगा, तेरी करुणा का उपहार , रहने दो देव ! अरे, मेरा मिटने का अधिकार !  परब्रह्म प्रिय, प्रेमिका जो आत्मसमर्पण मीरा में है वह महादेवी में नहीं हो सकता। आधुनिक नारी अपने व्यक्तित्व बोध के कारण “बेचे तो बिक जाऊँ “ -यह पराकाष्ठा संभव नहीं है।

 मेरे पास “यामा”(सचित्र ) दीपशिखा ( सचित्र ) मेरी अमूल्य निधि के रूप संजोये हुए हैं ! आज कितना कुछ लिखती जा रही हूँ दिल नहीं भर रहा है । लगभग सभी कविताएँ कंठस्थ है । आप के सान्निध्य की स्मृतियों का चलचित्र मेरे आँखों के सामने चल रहा है । मैंने महादेवी जी से पूछा, इनमें बदलू कुम्हार की बनायी सरस्वती की मूर्ति कौन सी है। आप ने हँसते हुए एक सरस्वती की मूर्ति की तरफ़ इशारा किया । बदलू कुम्हार के संस्मरण की पंक्ति आज अनायास याद आ रही है । “ कला किसी की क्रीतदासी नहीं है ।"

 यह लेख तत्कालीन समाज और साहित्य- समाज  का ऐतिहासिक दस्तावेज है । ऐसे समय में महादेवी ने अपने सामाजिक कार्य में एवं विद्यापीठ चलाने में कितना संघर्ष किया होगा इसका अंदाज़ा लगाया जा सकता है  । अकेली स्त्री के वर्चस्व को स्वीकार कर पाना पुरुष समुदाय को ही नहीं , स्त्री समाज को भी कठिन है । आज भी कठिन है तो आप के समय के लिए क्या कहें ? वैवाहिक जीवन अस्वीकार करने के महादेवी जी के व्यक्तिगत  कारणों को जानने का कौतूहल ज़्यादा था। अतीत के चलचित्र में आप ने कहा था - इन स्मृति चित्रों के साथ मेरे जीवन का अंश भी आ गया। रंगों के प्रति उदासीनता और श्वेत वस्त्र धारण के संबंध में मारवाडिन भाभी की स्मृति को ताजा किया । महादेवी का व्यक्तित्व अपने समय के सामाजिक , राजनीतिक  एवं साहित्यिक संघर्ष की अग्नि में तप्त कुंदन है  ।  ………… डॉ० मणि की स्मृतियों से


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शनिवार, 25 मार्च 2023

कामिल बुल्के जी के व्यक्तित्व की पुण्य स्मृति में

सुदूर दक्षिण में रहनेवाली मुझे भी पुण्यात्मा कामिल बुल्के जी के दर्शन का सौभाग्य मिला। यह १९७२-७३ की बात है। मैं उस्मानिया विश्वविश्वविद्यालय में एम०ए० हिंदी की छात्रा थी। "एशिया के देशों में राम कथा" के संदर्भ में उन्होंने व्याख्यान दिया। प्रशांत मुद्रा में उनके भाषण के साथ उनका व्यक्तित्व भी झलक रहा था। तब मुझे समझ में आया कि किसी भी भाषा पर कोई अन्य भाषा-भाषी भी साधिकार बोल सकता है, बशर्ते परिश्रम के साथ उस भाषा के प्रति प्रेम हो। प्रेम के कारण परिश्रम का समय भी आनंददायक होता है। 

हिंदी विभाग में थोड़ी सहमी सकुचायी-सी रहती थी। मेरे आचार्य बनारस हिंदू विश्वविद्यालय एवं लखनऊ विश्वविद्यालय के थे। विवाह के बाद मैं हैदराबाद आई। मैं गोदावरी किनारे पर बसे राजमहेंद्री नगर की हूँ। फादर कामिल बुल्के मेरे प्रेरणास्रोत रहे। आज से पचास साल पहले उन्होंने मुझमें साहस जगाया। 

ख़ैर, व्याख्यान का दिन आज मेरी स्मृति में फ़ोटो जैसे सुरक्षित है। बड़ा हॉल पचास-साठ विद्यार्थी एवं अन्य विशिष्ट व्यक्तियों से भरा था। व्याख्यान के बाद मैंने भी प्रश्न पूछा था। राम के संदर्भ में उनका यह उद्धरण आज भी मुख-मुद्रा के साथ याद है -  
"अवनि हिमाद्रि समुद्र जनि करहु वृथा अभियान  
शांत धीर गंभीर तुम सम राम सुजान।।" 

- प्रोफ़ेसर पी० मणिक्याम्बा 'मणि' की स्मृति से।

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