डॉ० हरिवंश राय बच्चन जी का पत्र पिताश्री डॉ० कुँअर बेचैन जी के लिए अमिताभ बच्चन जी के लैटरहैड पर**
बात है 1975-76 की जब मैं पाँच वर्ष का रहा होऊँगा। एक दिन डाकिया रोज की तरह दरवाज़े की साँकल बजाकर घर में चिट्ठियाँ डालकर गया और दरवाज़े की साँकल की आवाज़ सुनकर हम बच्चे सीढ़ियों से उतरकर दरवाज़े की ओर दौड़े। तब हम ग़ाज़ियाबाद के पुराने शहर डासना गेट पर रहते थे जो घर पहली मंज़िल पर था। कुछ पत्रिकाओं, कुछ पोस्टकार्ड, कुछ अन्तर्देशीय पत्रों की भीड़ में एक बड़ा सफ़ेद लिफ़ाफ़ा था जिस पर प्रेषक के नाम में लाल रंग से अमिताभ बच्चन लिखा था।
पापाजी सम्मेलन में बाहर गए हुए थे तो यथावत सारे पत्र मम्मी के हाथ में देते हुए हमने कहा कि ये पत्र पहले खोलकर पढ़ें ये अमिताभ बच्चन ने भेजा है पापाजी को। मम्मी ने भी उत्सुकता से पत्र खोला तो पहली पंक्ति में लिखा था,
प्रिय कुँअर,
मेरे लैटरहैड ख़त्म हो गए थे इसलिए ये पत्र मैं अमिताभ के लैटरहैड पर लिख रहा हूँ।
तब तक मम्मी समझ चुकी थीं कि ये पत्र अमिताभ जी ने नहीं बल्कि डॉ० हरिवंश राय बच्चन जी का था जिसमें उन्होंने पापाजी के नवगीत संग्रह “पिन बहुत सारे” की बहुत प्रशंसा की थी और पापाजी के साथ साझा की मंच की कुछ स्मृतियों का भी उल्लेख किया था। उन्होंने एक संरक्षक की की तरह पापाजी को पुत्रवत रूप में ढेरों आशीर्वाद दिए हुए थे।
पापाजी उस समय कोलकाता कविसम्मेलन में गए हुए थे और दो दिन बाद घर लौटे। जब मम्मी ने उनको सारे पत्र दिए तो पाया कि वो एक पत्र ग़ायब है। हम बच्चों से प्रश्न किया गया तो पाया कि वो तो सामने वाली ताऊजी के पास है। कारण था हम बच्चे उस पत्र को लेकर पूरे मोहल्ले में घूम रहे थे और मोहल्ले के हर घर में ये चर्चा थी कि डॉक्टर साहब के घर अमिताभ बच्चन का पत्र आया है। सारी मुँहबोली चाचीजी, ताईजी, बुआजी या दादीजी सबको मालूम था ये बात।
पापाजी ने कहा कि “जाओ लेकर आओ ताईजी के घर से वो पत्र।” जब हम लाए और पापाजी ने अपने फोल्डर में उस पत्र को सँभालकर रख लिया जहाँ वो सभी ज़रूरी प्रपत्र रखा करते थे। बाद में उन्होंने उस पत्र का उत्तर भी लिखा।
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बाद में घर बदलने के समय पत्र इधर-उधर हो गए और नए घर में आने के बाद हम ये तलाशते ही रह गए कि वो पत्र कहाँ सँभालकर रख गया जो मोहल्ले और रिश्तेदारों में एक चर्चित प्रसंग रहा था। आज भी अफ़सोस है कि काश तब भी मोबाइल का ज़माना होता तो तुरंत पत्र का फ़ोटो खींचकर अपने पास रख लिया होता।
इसके कई वर्षों बाद डॉ० हरिवंश राय बच्चन जी की स्मृति में एक कार्यक्रम में पापाजी भी आमंत्रित थे और जब वो लौटे उसके कुछ दिनों बाद पापाजी के लिए अमिताभ बच्चन जी का ही लिखा पत्र धन्यवाद रूप में आया। इस बार मैंने बिना देरी किए मोबाइल से पत्र की तस्वीर ली और अपने पास सुरक्षित रख लिया। तलाश है अभी भी उस पुराने पत्र की जो कहीं सँभालकर बहुत सुरक्षित रखा गया था।
-प्रगीत कुँअर की स्मृति से
(सिडनी, ऑस्ट्रेलिया)
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