मेरे पिता व हिंदी के प्रख्यात कवि स्व दिनकर सोनवलकर बहुत ही सहज,सरल,आत्मीय,फक्कड़,फिकर नॉट व्यक्तित्व के धनी थे।उनके कुछ संस्मरण व किस्से साझा कर रहा हूँ।
एक बार जावरा जिला रतलाम मध्यप्रदेश जहां के शासकीय कॉलेज में दिनकर सोनवलकर दर्शन शास्त्र के प्राध्यापक थे,वहाँ के बसस्टैंड पर रात को कोई चलते वाहन में से नींद में सोई एक छोटी 4 साल की बच्ची गिर गई व वाहन में बैठे लोग बेखबर जावरा से आगे निकल गए।पिताजी के दयालु व कोमल ,उदार स्वभाव के चलते कुछ परिचित उस बच्ची को घर ले आये।पिताजी बोले अब ये मेरी तीसरी बच्ची है।पहले से मैं व बड़ी बहन थे ही।मेरी मां व सब हतप्रभ क्योंकि तत्समय मैं 18 वर्ष का व पिताजी54 के थे।संयोग से दूसरे दिन सुबह उस बच्ची के परिजन खोजते हुए आये व उसे ले गए।
पिताजी की कविता है इतनी सी महत्व की आकांक्षा मेरी कि भले ही जीवन में अर्थ मिले या न मिले जीवन को अर्थ मिले उन पर सदैव चरितार्थ हुई ।
2,बिना पूर्व सूचना के अनेक अतिथियों को घर भोजन हेतु निमंत्रित कर लेते थे जबकि घर पर मां जिसे भोजन बनाना हो उसे पता ही नहीं रहता था व अतिथि आ जाते थे।एक बार महाकवि हरिवंश राय बच्चन को दमोह मध्यप्रदेश व कवि बालकवि बैरागी जी व 10 अन्य को अनेक बार जावरा घर पर पिताजी ने ऐसे ही बुलाया।
3 वे बड़े प्रोफेसर थे किंतु तांगे में बैठकर अभावग्रस्त कवि,गायक,कलाकारों की मदद के लिये चंदा एकत्रीकरण व महफिलें सजाने में उन्होंने कभी शर्म महसूस नहीं की।वे कथनी ,करनी में अर्थात आचरण में भी एक जैसे थे।
4,अनेक पान,चाय की गुमटी वालों को पिताजी ने बड़ी राशि कई बार जरूरत पड़ने पर उधार दी व उनके वापस नहीं करने पर कभी स्मरण नहीं कराया।
वे कहते थे मशाल की तरह न जल सकते हो तो न सही,अगरबत्ती की तरह परिवेश को सुगन्धित तो कर ही सकते हो।
5 कभी भी मेरी या बहन की शिक्षा, विवाह,नौकरी की कोई चिंता नहीं की व उदार मन से हमेशा मित्रवत सहयोग दिया।जीपीएफ खाते में भी उनका नाम दिनकर की जगह दिवाकर था संयोगवश एक परिचित ने वो त्रुटि ठीक कराई अन्यथा रिटायरमेंट पर राशि नहीं मिलती।
एक अदृश्य दैवीय शक्ति पर पिताजी को पूरा भरोसा था व उस शक्ति ने यथासमय उनके सारे दायित्व पूर्ण किये।बैंक बैलेंस उनका नगण्य था किंतु यश व नाम का बैलेंस भरपूर रहा।
6 कभी भी नौकरी में मेरे लिये कोई सिफारिश नहीं की जबकि तत्समय लोक सेवा आयोग के अध्यक्ष उनके शिष्य थे ।पिताजी बोले मेरा बेटा अपनी योग्यता व मेहनत से चयनित होगा व ऐसा हुआ भी।
अटल बिहारी वाजपेयी, उनकी कविताओं के प्रशंसक थे व संघ प्रमुख के सुदर्शन जी मित्रवत थे ।अनेक मंत्री,अफसर उनके शिष्य रहे लेकिन कभी पिताजी ने उन्हें भुनाया नहीं।
उन्हें जावरा जैसे कस्बे से इंदौर, उज्जैन, भोपाल, दिल्ली आने के कई आकर्षक प्रस्ताव थे।साहित्यकार प्रभाकर माचवे जी उन्हें चौथा संसार अखबार का सम्पादक बनाना चाहते थे किंतु पिताजी जावरा की आत्मीयता छोड़कर कहीं नहीं गए।
सम्भवतः इसीलिये उनके साहित्य,कृतित्व का यथोचित मूल्यांकन भी नही हुआ।
दिनकर सोनवलकर जी के 18 काव्य संग्रह,4 मराठी के हिंदी अनुवाद सहित प्रकाशित व कई पुरस्कृत हैं। हिंदी में व्यंग्य कविता के वे शुरुआती प्रमुख कवि हैं।धर्मवीर भारती उनके बड़े प्रशंसक थे।धर्मयुग, साप्ताहिक हिंदुस्तान, कादम्बरी, नईदुनिया नवनीत,दिनमान में दिनकर सोनवलकर सदैव छपे व चर्चित रहे।
जब बच्चन जी रतलाम घर आये तब दो पलंग,दो चटाई व एक टेबल कुर्सी ही घर में थी।
वे व्यक्तित्व से सरल व कद में छोटे पर आचरण में महान थे।
पूज्य पिताजी दिनकर सोनवलकर जी की पंक्तियों से विराम लेता हूँ
बड़ी छोटी छोटी बातों पर
घण्टों मुझसे नाराज़ बैठा
रहता है मेरा बेटा
मुझे उसकी नाराज़गी से कोई एतराज नहीं किन्तु
मेरी ख्वाहिश है कि वो
जीवन में बड़े मुद्दों पर
नाराज़ होना सीखे
भले ही उसके जीवन में
पल पल पर युद्ध हो
मगर उसकी आत्मा में
बुद्ध हो।
- प्रतीक सोनवलकर की स्मृति से
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