पिता जी को जब सर सुंदरलाल हास्पिटल, वाराणसी के डाक्टरों ने अपनी असमर्थता जताते हुए कहा कि इनके ब्रेन में ट्यूमर है, इन्हें तुरंत लखनऊ ले जाइए, तो उन्हें गांव के दो लोग राजेश्वरी प्रसाद सिंह,राम मूरत सिंह एवं चाचा कन्हैया पाण्डेय और लोकनाथ पाण्डेय साथ लेकर लखनऊ रवाना हुए। वहां उन्हें रेफर्ड स्थान पर(किंग जॉर्ज मेडिकल कॉलेज) भर्ती करा दिया गया। तथा पूर्व परिचित गीत के मीत ठाकुर प्रसाद सिंह से अस्पताल में समुचित चिकित्सकीय सुविधा के लिए लोग उनके कार्यालय पहुंचे।उस समय फ़ोन की इतनी सुविधाएं उपलब्ध नहीं थीं। ठाकुर प्रसाद सिंह उस समय निदेशक, सूचना जनसंपर्क थे। और पिता जी से सहज स्नेह करते थे।1970 में उनकी भाषा की प्रशंसा में नामवर सिंह जी को संदर्भित करते हुए एक लेख लिखा था ,जिसे लेकर काशी में विशेष चर्चा थी । ठाकुर प्रसाद सिंह जी के प्रशासनिक सहयोग से चिकित्सा आरंभ हो गई। वहां लखनऊ शहर के लोग श्रीलाल शुक्ल, कुंवर नारायण, अमृत लाल नागर, नरेश सक्सेना, विनोद भारद्वाज, विनय श्रीकर में से कोई न कोई रोज -ब-रोज हालचाल पूछने आते थे। स्थानीय समाचार पत्रों में ख़बरें छपने लगीं कि हिंदी के युवा कवि धूमिल की हालात ठीक नहीं है। स्वास्थ्य में सुधार हो रहा है । पिता जी एक दिन परिवार के जो लोग वहां थे, सबको पूरी गंभीरता से, लगभग समझाते हुए कहा कि देखो, दो बातें गांठ मार लो। जो भी हमसे मिलने आ रहे हैं,उसको चाय, पानी अवश्य पिलाना। जैसे घर, गांव में होता है। दूसरी बात ध्यान रखो कि कोई कुछ पैसा रुपया दे रहा हो तो लेना मत! भर्ती कराने के कुछ दिन बाद ठाकुर प्रसाद सिंह ने कहा कि देखो यदि सुधार नहीं होता है तो इन्हें बेल्लूर भेजवाते हैं? यह बात ठाकुर प्रसाद सिंह जी बेड के पास खड़े होकर चाचा से कह रहे थे, तभी पिता जी ने प्रत्युत्तर में कहा कि हमको तो आप भेजवा देंगें लेकिन इनका क्या होगा, जो हमसे पहले से कराह रहें हैं? ठाकुर प्रसाद सिंह जी चीजों को समझ कर चुपचाप चलते बने! कुछ दिन के बाद ख़बर छपी कि उत्तर प्रदेश सरकार की देखरेख में धूमिल जी की समुचित चिकित्सा व्यवस्था चल रही है। ख़बर छपने के दूसरे दिन विधानसभा में प्रश्नकाल के दौरान विपक्ष के नेता शतरुद्र प्रकाश ने स्वास्थ्य मंत्री से पूछा कि सरकार जनकवि धूमिल की चिकित्सा के लिए क्या कर रही हैं? वे यहां महीनों से भर्ती हैं? इस कार्यवाही के बाद मुख्यमंत्री हेमवती नन्दन बहुगुणा उनको देखने आए। मुख्यमंत्री के साथ उनका पूरा लाव लश्कर था। साथ में ठाकुर प्रसाद सिंह जी भी आए थे। ज्यों ही बहुगुणा जी अस्पताल वार्ड में घुसे (बेड नं 02दरवाजे से लगा हुआ था), स्नेह बस ठाकुर प्रसाद सिंह जी ने सिरहाने की ओर थोड़ी तेजी से आगे बढ़ कर पूछा, कैसे हैं? मुख्यमंत्री ने कहा कि ठाकुर इनको विदेश भेजवाने की व्यवस्था करो। पिता जी के आंखों में आंसू छलक उठे। वे तुरंत बोल उठे, हाथों से अपने अगल बगल इशारा करते हुए कहा कि, अरे इनका क्या होगा? और उनकी आंखें बन्द हो गईं। मुख्यमंत्री अपने लाव लश्कर के साथ बाहर जा चुके थे। बड़े चाचा कन्हैया पाण्डेय जी औपचारिक रूप से साथ निकल गये। छोटे चाचा लोकनाथ पाण्डेय जी वहीं काठ हो गये। बहुत कारुणिक दृश्य था। थोड़ी देर बाद पिता जी की आंखें खुलीं। उन्होंने मुस्कुराते हुए पूछा, कन्हैया कहां हैं? तब तक चाचा जी वार्ड में प्रवेश कर बोले, बोलिए क्या बात है। चाचा ने कहा अरे मुख्यमंत्री, ठाकुर भाई को लिवाकर आए थे। आपने नहीं देखा?
पिता जी बोल पड़े, अरे कन्हैया सब देखा।समझा भी। अब हम बच नहीं पाएंगें।यह सब नाटक है।
रह रह कर उनको ग़श्ती (कोमा) आ जाती थी।
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