पिता जी जिस दिन कचहरी में मुकदमें की तारीख होती थी,उस दिन घर से साइकिल से थोड़ा पहले निकलते थे। और हमारे पड़ोसी पैदल।वे साइकिल चलाना नहीं जानते थे।वे घर से तीन किलोमीटर दूर हरहुआ (बाबतपुर एयरपोर्ट से कचहरी वाले रास्ते पर स्थित एक बाजार) से सड़क मार्ग के किसी साधन सवारी से कचहरी जाते। पिता जी जब हरहुआ पहुंचे तो उन्होंने पड़ोसी महोदय को साधन की प्रतीक्षा में खड़ा देखा। पिता जी साइकिल पर नीचे पैर लगाकर खड़ा हुए, उन्हें कैरियर पर बैठाकर कचहरी के लिए निकल पड़े।इस घटना की चर्चा बहुत दिन तक होती रही।
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रत्नशंकर पाण्डेय की स्मृति से
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