इतिहास-पुरुषों के कक्षों में बोल रहा इतिहास
धीरे-धीरे पर सधे कदमों से जब आप संग्रहालय की आत्मा से जुड़ते हैं, तो लगता है ज्ञान की संपदा और धड़कता इतिहास आपके पीछे पीछे गुपचुप,गुमसुम टहल रहा है। यहाँ की खामोशी आपको बोझिल नहीं करती,वह आपको बहुत कुछ जानने की ताकत देती है।
विजयदत्त श्रीधर कहते हैं,'यहाँ संग्रहीत पुराने समाचार पत्रों और पत्रिकाओं की इबारतों में इतिहास को रूबरू देखने का रोमांच अनुभव किया जा सकता है।' यह सच तब बड़ी शिद्दत से सामने आता है जब इतिहास-पुरुषों के नाम से बने कक्षों में रचा बसा इतिहास स्तब्ध भी करता है,रोमांचित भी।
कालजयी लेखक,संपादक 'डॉ धर्मवीर भारती साहित्य प्रभाग' के अंर्तगत भारती जी के अतिरिक्त इस कक्ष में कवि प्रदीप,जहूर बक्श, कमलेश्वर, दुष्यंत कुमार, चित्रा मुदगल,गोविंद मिश्र, पुष्पा भारती, कृष्णबिहारी मिश्र, रमेशचन्द्र शाह, सत्येन कुमार, धनंजय वर्मा, राजेश जोशी की व्यक्तिगत लाइब्रेरी की पुस्तकें,उनकी पांडुलिपिपाँ, उन पर हुए शोध, लघु शोध प्रबंध व उन पर आईं पुस्तकें संगृहीत हैं।
डॉ. भारती कक्ष में भारती जी की किताबें, उनकी पांडुलिपि,उन पर किए शोध,उन पर आईं पुस्तकों के अलावा वह कुर्सी व वह जाकिट भी सुरक्षित रखी है, घर में वे जिस कुर्सी पर बैठते थे और जो जाकिट वे पहनते थे। भारती जी की पद्मश्री, मुक्ति संग्राम में इस्तेमाल किये बम के खोखे (जो भारती जी अपने साथ लाए थे) के अलावा 200 निबों से बनी वह माला भी यहाँ रखी है, जिसे उनके मुम्बई आने पर हुए एक सार्वजनिक अभिनंदन के वक्त पहनाई गई थी। गले में कारतूस रखने वाली पट्टी के डिज़ाइन की यह माला बेजोड़ है।
इसके अतिरिक्त 'बनारसीदास चतुर्वेदी जनपदीय अध्ययन प्रभाग' में लोकभाषा (बुंदेली,मालवी,बघेली), लोकगीत, लोकगाथा, मागधी,भोजपुरी, मैथिली, अवधी, गढ़वाली, कुमायूंनी, ब्रज, हिमाचली और राजस्थानी भाषा से जुड़ी दुर्लभ सामग्री उपलब्ध है।
'निरंजन महावर प्रभाग' में 5,206 किताबें मौजूद हैं। भारत की जनजातियाँ, छतीसगढ़ की भाषा, साहित्य, लोकजीवन, मूर्तिकला, मंदिरकला, चित्रकला, हस्तशिल्प, चित्रकला का इतिहास आदि से जुड़ी दुर्लभतम सामग्री उपलब्ध है।
'गणेशशंकर विद्यार्थी कक्ष' में 10,000 पुस्तकें उपलब्ध हैं, जिनमें विज्ञान और अंग्रेजी की किताबों के साथ 5600 संदर्भ फाइलें हैं। 'माखनलाल चतुर्वेदी कक्ष ' में मनीषियों को समर्पित अभिनन्दन ग्रंथ हैं, जिनकी सँख्या 3000 है।
शब्दकोश, विश्वकोष, गजेटियर के अलावा सरस्वती, विशाल भारत,हंस(प्रेमचंद),जागरण(प्रेमचंद), मधुकर, मर्यादा, महारथी, माधुरी(प्रेमचंद), चाँद, सुधा, वीणा, विक्रम आदि के वे अंक सुरक्षित हैं, जो इतिहास कथाओं का ज़रूरी हिस्सा रहे हैं।
यही नहीं दुर्लभ पांडुलिपियों में श्रीमद्गभगवतगीता, श्रीराम गीतावली, प्रागन गीता,वेदार्थ प्रकाश, तिथि दर्पण सहित कई दुर्लभ पांडुलिपियाँ यहाँ मौजूद हैं।
मेरे गुरु कमलेश्वर के शब्द उधार ले लूँ तो यह 'यह संग्रहालय शब्दों और विचारों की विपुल संपदा का रक्षक है। यहाँ आ कर मैं अपने अतीत से नहीं, बल्कि भविष्य से मिलने की नई ऊर्जा और शक्ति ले कर जा रहा हूँ। यह एक अदभुत उपक्रम है- अपने इतिहास,परंपरा और विरासत को पहचान कर आगे देख सकने का एक शक्तिपुंज।'
सच यहीं पर कहीं ठहरा है। अपनी साफ़गोई, ईमानदारी, प्रतिबद्धता, लगन, समर्पण और सरोकारों के संग-साथ।
बहुत मुश्किल है इस दौर में विजयदत्त श्रीधर बनना और बने रहना।
-हरीश पाठक की वॉल से तथा संतोष श्रीवास्तव के सौजन्य से
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