मन्नू भंडारी |
यह वाक़या 2015 का है, जब आदरणीय बाबू जी अमृतलाल नागर की जन्मशती के उपलक्ष्य में , "उ.प्र. हिन्दी संस्थान" ने दो दिवसीय भव्य आयोजन के तहत देश के उन साहित्यकारों को बाबू जी के व्यक्तित्व और कृतित्व पर व्याख़्यान हेतु निमंत्रित किया था, जिनका उन पर गहन अध्ययन था या जो उनके बहुत निकट रहे । डॉ.प्रभाकर श्रोत्रिय, डाॅ. सूर्यप्रकाश दीक्षित, आदरणीय सोम ठाकुर, बेकल उत्साही जी, नासिरा शर्मा जी, अचला नागर दीदी, उनका बेटा संदीपन नागर (रंगमंच की मशहूर हस्ती) व अन्य परिवार जन शामिल हुए थे ।
हिन्दी संस्थान का वह एक सफलतम और यादगार कार्यक्रम था, जो आज तक याद आता है ।
लखनऊ के इस साहित्यिक आयोजन से लौटते वक्त, मैने एक सप्ताह दिल्ली रुकने का भी प्रोग्राम बना लिया था, जिससे अपने रिश्तेदारों और मित्र-परिवारों की लम्बे समय से न मिलने की शिकायत दूर कर सकूँ और दिल्ली के सात दिवसीय पड़ाव के दौरान, एक पूरा दिन मैंने अपनी प्रिय लेखिका "मन्नू भंडारी दीदी" से मिलने का रखा।
सो, दिल्ली पहुॅंचने पर, सबसे पहले मैं "मन्नू भंडारी " दीदी से मिलने गई। इन्दिरापुरम जहाॅं मैं ठहरी थी, वहाॅं से दीदी के घर "हौज़ख़ास* जाना कोई सरल कार्य नहीं था । लेकिन मिलने की ललक, नदी, पहाड, नाले , सब.पार करवा देती है और यहाॅं तो सिर्फ़ कई किलोमीटर लम्बी सड़कों के जाल को ही पार करना था । सो मैं अपनी सहेली के बेटे "कनु" के साथ मन्नू दीदी के घर आराम से पहुँच गई । कनु, ग्रेजुएशन के साथ थिएटर भी करता है । थिएटर पूरे परिवार में समाया हुआ है । कनु की नानी भी NSD .से जुड़ी हुई थी, मम्मी भी थिएटर करती थी । बहन रिद्धिमा 'कत्थक कलाकार ' है ।अक्सर, Stage Shows देती रहती है । दिल्ली दूरदर्शन से भी उसकी नृत्य प्रस्तुति आ चुकी है । विदेशों में भी अपने नृत्य कार्यक्रम कर चुकी है । इस कलाकार परिवार का कलाकार बेटा 'कनु' भी मन्नू दीदी से मिलना चाहता था क्योकि, वह दीदी के प्रख़्यात उपन्यास महाभोज के मंचन का हिस्सा रह चुका था, अनेक बार ज़ोरावर की भूमिका निभा चुका था ।
सो हम दोनो उत्साहित से मन्नू दीदी के घर पहुँचे । वर्षों से दीदी की सेविका लक्ष्मी ने दरवाज़ा खोला, बड़े आदर - सम्मान के साथ हमें ड्रॉइंगरूम में बैठाया । फिर सरपट मन्नू दी के कमरे में बताने चली गई ।
इसके बाद, फिरकी सी रसोई में गई और ट्रे में दो गिलास पानी लेकर आई । मन्नू दी के बेडरूम से धीरे-धीरे हमारे पास आने तक, लक्ष्मी मुझसे बतियाती रही । कहने लगी, आज सुबह से आपके आने की बाट जोह रहे है हम ।
मैंने कहा कि मैं तो जल्द से जल्द आ जाना चाहती थी, पर दिल्ली की दूरियाँ और भीड़ इंसान का बहुत समय खा लेती है । लक्ष्मी मेरी बात से सहमत हुई ।
तभी मन्नू दीदी, छड़ी के सहारे धीरे-धीरे आती दिखी । उनको देखते ही मैं गति से उठी और उन्हें प्रणाम कर, जैसे ही चरण-स्पर्श करना चाहा, उन्होने बीच में ही रोक कर गले लगा लिया और दुलारती हुई बोली....
अरे, कहीं बेटियों सै भी पैर छुआए जाते है ?
कनु ने भी नत होते हुए, उनके पैर छुए , तो उसको दीदी नहीं रोका और बोली -हाँ, बेटा, तुझे मैं नहीं रोकूँगी । लेकिन ज़रूरत तुझे भी नहीं है , पैर छूने की बच्चे ।
मैंने कहा - दीदी, ये आपके 'महाभोज' के जोरावर की भूमिका निबाह रहा है, इसलिए यह तो चरणस्पर्श किए बिना, आशीर्वाद लेगा नहीं।
यह सुनते ही दीदी ने उस छह फुट लम्बे, सुन्दर कनु को ऊपर.से नीचे तक देखा और बोली -
अभी तो कॉलिज छात्र सा लगता है.....साहित्य, थियेटर भी पढ़ाई के साथ-साथ ??..... बहुत अच्छी बात है, दीप्ति । वरना, तो आज-कल इस नाज़ुक उम्र के किशोर' तो पार्टी, डिस्को मे लगे रहते हैं ।
मैंने दीदी के सही आकलन से सहमत होते हुए कहा -
दीदी, कनु कलाकार ख़ानदान से है । नानी, मम्मी, बहन सब NSD वाले हैं ।
दीदी वाकई प्रभावित हुई । तभी लक्ष्मी मुस्कुराती हुई, चाय, नाश्ता लिए हाज़िर हुई । बढ़िया बंगाली रसगुल्ले देख कर, मेरी तो बांछे खिल गई । समोसा, दालमोठ सभी बहुत tempting लग रहे थे । मैने कहा भी के इतना सारा नाश्ता.....इतनी तक़लीफ़ काहे उठाई दीदी ?
दीदी बोली : अरे, कुछ नहीं .....खाओ, चलो । तेरे मनपसंद बंगाली रसगुल्ले है, तुझे सारे खाने होंगे।
मैंने हैरान होते हुए पूछा__
आपको कैसे पता कि मुझे बंगाली रोशोगुला पसंद है?
दीदी बोली__
दो साल पहले, फ़ोन पर दीवाली के दिन मिठाइयों की बात करते हुए मैंने तुझसे पूछा था कि तुझे कौन सी मिठाई पसंद है, तो तूने बंगाली रसगुल्ला बताया था।बस, वो मुझे याद रहा
मैंने गदगद होते हुए कहा_
दीदी........आपका मेरे साथ casual बातचीत के दौरान, मेरी पसंद को जानना और उसे याद रखना, रसगुल्ले से भी ज़्यादा मीठा और मनभावन है।
चाय पीते-पीते, दीदी ने लखनऊ आयोजन के बारे में जानना चाहा, उसके बारे में संक्षेप में बताया, कुछ नागर जी की बातें हुई । उसके बाद, हम फिर से, महाभोज उपन्यास की रोचक बातों और उसके वर्षों से चल रहे, सफल मंचन पर चर्चा करने लगे ।
तब दीदी ने महाभोज के मंचन से जुड़ा, एक अविस्मरणीय वाक़या सुनाया ।
श्रीराम सेंटर पर महाभोज का मंचन चलता ही रहता था ।सो एक बार, शायद, 2009 या 2010 में, दीदी के पास राजेन्द्र यादव जी का फ़ोन आया कि
आज महाभोज देखने, श्रीराम सेंटर चलते हैं । तैयार रहना, मैं पिकअप कर लूँगा ।
दीदी भी समय से तैयार हो गई । लेकिन इत्तेफ़ाक से, राजेन्द्र जी को घर से निकलने, ऊपर से, दिल्ली के चक्काजाम ट्रैफ़िक में हौज़ख़ास पहुँचते -पहुँचते थोड़ी देर हो गई और फिर वहाँ से जब तक, वे दोनों श्रीराम सेंटर पहुँचे, तो Show को शुरू हुए आधा घंटा हो चुका था । कार से उतर कर, जब दीदी और राजेन्द्र जी, थियेटर के प्रवेश द्वार पर पहुँचे तो, गेट पर खड़े 'गार्ड' ने दोनों को रोक दिया । उन्हे वह अन्दर ही न जाने दे ।
महाभोज की रचयिता को अपने ही उपन्यास के मंचन को देखने की अनुमति नहीं मिल रही थी । नया गार्ड दोनों को न जानता था, न पहचानता था, सो वह नियमानुसार अपनी ड्यूटी बामशक्कत (बामुशक्कत) , बामुलाहिजा स्टाइल..में ...निबाह रहा था और इधर ऊँचे साहित्यिक क़द वाले सरल - तरल स्वभाव पति-पत्नी उस गार्ड से भोलेभाले अन्दाज़ म़े अपनी बात कह रहे थे -- अपने 'ऊँचे स्टेटस' का तनिक भी 'दबाव' डाले बिना, किसी भी तरह की झुंझलाहट, क्रोध, खीज दिखाए बिना ।
जब गार्ड टस से मस नहीं हुआ, तब भी, दोनो ने अपने Well known Status का तनिक भी हवाला नहीं दिया, और न ही निदेशक के पास अन्दर अपने नाम की पर्ची भेजने की सोची और वहाँ से लौटने का निर्णय ले लिया । दोनो सहज भाव से वहाँ से लौट आए ।
वास्तव में जो लोग दिलोदिमाग, सोच एवं प्रतिदिन के व्यवहार में गम्भीर और ऊँचे होते हैं, वे शालीनता से गरिमामय शान्ति बनाए रखते हैं । ऐसे समझदार और विचारशील लोगो की लड़ाईयाँ अपने स्टेटस, मान,सम्मान, के लिए नहीं ,वरन महाभोज की तरह, सामाजिक, राजनीतिक कुप्रथाओ और कुव्यवस्थाओ के ख़िलाफ़ होती है । ग़रीब के अधिकारों और हक़ के लिए होती है ।
वरना अपने लिए तो हर कोई आवाज़ ऊँची करता है और दूसरों के साथ होने वाले अन्याय को पत्थर बना देखता रहता है ।
मन्नू दीदी ने उस दिन भी वह वाक़या उतने ही तटस्थ और नि:स्पृह भाव से, सादगी भरे लहज़े में सुनाया, जितनी तटस्थ और नि:स्पृह वे उस दिन श्रीराम सेंटर में प्रवेश न मिलने पर रही थी ।
इसे कहते है - ऊँचे साहित्यिक और वैचारिक क़द की दुर्लभ सादगी और उदात्तता......जिसे बारम्बार नमन करने को दिल चाहे ।
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