कटनी से 65-67 कि.मी. उत्तर की ओर सतना जाने से पूर्व "मैहर" एक छोटा सा कस्बा है, जो "शारदा माता " के पहाड़ की चोटी पर स्थित मंदिर के लिए जाना जाता है। ,
सन्1918 में बाबा ने इसी स्थान को चुना और "मैहर बैण्ड"( जिसे अब "मैहर वाद्य वृन्द" कहते हैं)एवं "मैहर संगीत घराने" की स्थापना की थी। बाबा सरोद , सितार एवं ध्रुपद गायकी के लिए जाने जाते थे। उन्होंने "लोलो और मुन्ने खां से दीक्षा ली थी । बाबा २०वीं सदी के सबसे महान संगीत शिक्षक माने जाते थे। उन्होंने "जल-तरंग", "नल-तरंग"और "चन्द्र-तरंग" वाद्य यंत्रों का अविष्कार किया था। उन्हें १९५८ में "पद्म श्री"और १९७१में "पद्म विभूषण" सम्मान भी मिले थे । उनके पुत्र "उस्ताद अली अकबर खां" भी सरोद वादक थे। उन्होंने ही पाश्चात्य देशों का "सरोद" वाद्ययंत्र से परिचय करवाया था , अमेरिका में अपना प्रोग्राम दे कर।
पंडित रविशंकर भी बाबा के शिष्य थे। उन्होंने बाबा की बेटी" अन्नपूर्णा" से इसलिए विवाह किया था कि बाबा कहीं अपने पुत्र को अधिक शिक्षा न दे दें । वे दामाद बनकर उनके प्रिय बने और पूरी शिक्षा प्राप्त की। बाबा प्रति वर्ष दिसम्बर में " संगीत सम्मेलन " करते थे। तब क्रिसमस की छुट्टियों में हम पांच दिनों के लिए मैहर में संगीत सम्मेलन में सम्मिलित होने जाते थे। घर से रजाईयां और गद्दे वहां ट्रक में भिजवा देते थे, क्योंकि पंडाल में कड़ाके की ठंड लगती थी पर हमें सारी-सारी रात वहां जागकर संगीत का आनंद लेना होता था नीचे गद्दे बिछाकर और ऊपर रजाईयां ओढ़कर । बीच में जब पक्के राग होते थे ,तभी कुछ नींद आ जाती थी । वैसे भोर की आहट होते ही राग भैरवी से इसको विराम मिलता था । और भोर होने पर चिड़ियों का चहचहाना सुनते ही हम मेरे ताया जी के बेटे जो वहां रहते थे ,उनके घर चले जाते थे । खा-पीकर दिन भर वहां सोते थे, शाम को फिर मस्ती का कोई नया शुगल होता था ।
बाबा अलाउद्दीन खान साहब अली अकबर खान (सरोद वादक) के पिता और पंडित रविशंकर जी (सितार वादक) के ससुर थे! आज भी उनके जाने के पश्चात वहां 3 दिन का उर्स मनाया जाता है! 2020 में हेमा मालिनी भी उस उर्स में उन्हें श्रद्धांजलि देने गई थीं अपना नृत्य पेश करके। हम बाबा के पास लाल किनारी की सफेद धोती पहन कर जाते थे। वैसे घर के भीतर हर कोई नहीं आ सकता था। मैं कोई संगीतज्ञ नहीं थी केवल अली अकबर दादा और अन्नपूर्णा दीदी के कारण हर वर्ष वहां जाना होता था। मैं भी कुछ वर्ष सितार सीखती रही। प्रयाग से परीक्षाएं भी दीं। किंतु कुछ कारणवश बीच में ही छोड़ दिया।
बाबा अलाउद्दीन खान साहब को प्रणाम करने के स्वरूप सभी प्रसिद्ध कलाकार बाबा को अपना संगीत भेंट करने आते थे। कोई पैसे नहीं दिए जाते थे। शास्त्रीय संगीतकार पंडित शामता प्रसाद तबला वादक बनारस घराने से थे। उनकी उंगलियों का थिरकना जादू लगता था। उन्होंने सन् 75 में फिल्म "जनम जनम के फेरे" में तबला बजाया था फिर अन्य कई फिल्मों में भी तबला बजाया था। भारत रत्न उस्ताद बिस्मिल्लाह खान शहनाई वादक, उस्ताद विलायत खां सितार वादक, पन्नालाल घोष बांसुरी वादक बसंत राय ,बहादुर राय और पंडित हरिप्रसाद चौरसिया व अन्य कई कलाकार आते थे। कई दिग्गज कलाकार बाबा का आशीर्वाद प्राप्त करने हेतु आते और आशीर्वाद पाते थे। खाना खिलाते समय हमारा सबसे मेल हो जाता था बाबा के घर में। वैसे बाबा यतीम बच्चों को संगीत सिखाते थे। ऐसे महान संगीतकार हमारे देश के शास्त्रीय संगीत के स्तंभ हैं। उनके दर्शन करके हम धन्य हो जाते थे। तभी भर सर्दी में हम वहां भागे जाते थे प्रतिवर्ष।
- डॉ. वीणा विज उदित का स्मृति से
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