‘क़िस्से साहित्यकारों के’ - ‘हिंदी से प्यार है’ समूह की परियोजना है। इस मंच पर हम  साहित्यकारों से जुड़े रोचक संस्मरण और अनुभवों को साझा करते हैं। यहाँ आप उन की तस्वीरें, ऑडियो और वीडियो लिंक भी देख सकते हैं। यह मंच किसी साहित्यकार की समीक्षा, आलोचना या रचनाओं के लिए नहीं बना है।

हमारा यह सोचना है कि यदि हम साहित्यकारों से जुड़े संस्मरण और यादों को जो इस पीढ़ी के पास मौजूद है, व्यवस्थित रूप से संजोकर अपनी आने वाली पीढ़ी को दे सकें तो यह उनके लिए अनुपम उपहार होगा।



शनिवार, 25 मार्च 2023

खरगौन में कवि सम्मेलन

सबसे अलग मेरी एक आपबीती भी सुन लीजिए।

बात सन १९८२ की है। खरगौन में कवि सम्मेलन था। जिसमें बालकवि बैरागी जी, नीरज जी, हास्य कवि शैल चतुर्वेदी जी सहित कई कवि शामिल थे। नीरज जी उस दिन कुछ ज्यादा ही मूड में थे। भारी भीड़ में लोगों ने शोर मचाना शुरु कर दिया। स्थिति गंभीर होती देखकर आयोजक भाग गए। लोग स्टेज पर चढ़कर हुल्लड़ करने लगे। व्यवस्था को बिगड़ता देखकर मैं अपने फ़ोर्स सहित स्टेज पर गया और इन महानुभावों को सुरक्षित निकालने के लिए लगभग डाँटता हुआ सा उठाया और सबको अपनी गाड़ी में बैठाकर लेकर भागा। पीछे-पीछे लोगों की भीड़। मैं बड़ी मुश्किल से लोगों को समझा पाया कि इन सब को गिरफ्तार किया जाएगा। मैं इन सब को लेकर सर्किट हाउस आया जहाँ मैं उन दिनों रहता था। एक कमरे में इन्हें बंद कर मैं तुरंत घटना स्थल पर वापस गया और भीड़ को नियंत्रित किया। फिर उस दिन कार्यक्रम नहीं हो सका। उपद्रव करने वाले कुछ लोगों को भी गिरफ्तार किया गया। करीब सुबह चार बजे मैं लौटकर आया।अपनी यूनीफ़ॉर्म उतारकर मैंने आदरणीय नीरज जी से माफी माँगी और कहा कि यह नाटक करने के अलावा आपकी सुरक्षा का कोई चारा नहीं था। बालकवि बैरागी जी बोले मुझे, कुछ मामला गड़बड़ है अंदर, आपने हम लोगों को बचाया क्यों? उन दिनों बैरागी जी भी प्रसिद्धि की ऊँचाइयों पर थे। मैंने उन्हें बताया कि आपकी नर्मदा वाली कविता मुझे बहुत पसंद हैं और आदरणीय नीरज जी की कविताएँ पढ़ते रहता हूँ। कभी-कभी खुद भी कुछ कविताएँ लिख लेता हूँ। उनके अनुरोध पर मैंने उन्हें अपनी कुछ कविताएँ सुनाई। सबसे अपनी विवशता के लिए क्षमा माँगते हुए खंडवा से सबको ट्रेन से रवाना किया। रवाना होने से पहले आदरणीय वैरागी जी ने मेरी डायरी में लिखा "अच्छी कविताओं के लिए बधाई"। यह मेरे जीवन का अविस्मरणीय प्रसंग बन गया है।

आनंद पचौरी की स्मृति से।

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