नब्बे वर्ष का लंबा जीवन, लगभग छह दशक का रचनाकर्म! संभवतः कुछ अधूरी कहानियाँ और संस्मरण! दुनिया में किस व्यक्ति को ज़िंदगी में सबकुछ मिला है? मन्नू जी, आपका लिखना रुका, पर कम लिखकर यश भी तो खूब मिला - यह क्या कम है?
मन्नू भंडारी, कथाकार से भी पहले अध्यापिका के रूप में मेरे मन की स्मृतियों में बसती हैं। विद्यार्थी जीवन में उन्हें मैडम अधिक और कथाकार कम - इस रूप में जानती रही। दिल्ली विश्वविद्यालय के प्रसिद्ध कॉलेज मिरांडा हाउस में बी०ए० की कक्षाओं में उनसे हिंदी पढ़ना, फिर एम०ए० करते हुए समकालीन कथा साहित्य पर उनसे संवाद .. ये स्मृतियाँ भुलाए जाने के लिए नहीं हैं।
अच्छी तरह याद है.. बी०ए० ऑनर्स हिंदी के दूसरे साल में, मन्नू जी के साथ गोदान पर वह पहली क्लास .. छोटी छोटी नाजुक उँगलियों वाले उनके हाथों से बनती वे नाज़ुक आकृतियाँ.. और वह रोचक अभिव्यक्ति तो कभी भुलाई ही न जा सकी, जब कथासाहित्य के पेपर में कहानी विशेष पर टिप्पणी करते हुए मन्नू जी ने कहा -
"ज्यों केले के पात पात में पात, त्यों सज्जन की बात बात में बात!"
कड़क कलफ़ वाली सुंदर सूती साड़ियाँ और छोटे से माथे पर गहरे मेहरून रंग की बड़ी सी सिंदूर बिंदिया .. यह शिल्पा की चिपकू बिंदी बाज़ार में आने से पहले की बात ज़रूर है मैडम, पर आपसे पढ़ते थे, यह बहुत पहले की बात नहीं! आपसे पढ़कर, जब हम खुद पढ़ाने लगे, तब आपकी अस्वस्थता के बीच हमने आपको कई बार ढूँढा, आग्रह-मनुहार की, आपको अपने बीच पाना चाहा, उस आत्मीय गहन स्वर को फिर सुनना चाहा। लेकिन आप नहीं मिली तो नहीं मिली। आप काले मोतियाबिंद और बाद में न्यूरोल्जिया से जूझ रही थी।
आपकी रचनाओं के बहाने आपसे मिलना, हमेशा सार्थक लगता रहा, इतना कि यह प्रिय शे'र भी कुछ बेमानी सा लग रहा है ..
अबके बिछुड़े तो शायद कभी ख्वाबों में मिलें
जिस तरह सूखे हुए फूल किताबों में मिलें!
मैंने इसमें एक नया मानी तलाशने की कोशिश की, उसे आपके साथ की स्मृतियों को समर्पित करती हूँ...
न तो बिछुड़े हैं न ख्वाबों में मिलेंगे
आप खुशबू हैं, किताबों में मिलेंगे!
साहित्य की आरंभिक समझ देने के लिए आपका आभार मैडम!
- विजया सती की स्मृति से।
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