‘क़िस्से साहित्यकारों के’ - ‘हिंदी से प्यार है’ समूह की परियोजना है। इस मंच पर हम  साहित्यकारों से जुड़े रोचक संस्मरण और अनुभवों को साझा करते हैं। यहाँ आप उन की तस्वीरें, ऑडियो और वीडियो लिंक भी देख सकते हैं। यह मंच किसी साहित्यकार की समीक्षा, आलोचना या रचनाओं के लिए नहीं बना है।

हमारा यह सोचना है कि यदि हम साहित्यकारों से जुड़े संस्मरण और यादों को जो इस पीढ़ी के पास मौजूद है, व्यवस्थित रूप से संजोकर अपनी आने वाली पीढ़ी को दे सकें तो यह उनके लिए अनुपम उपहार होगा।



मंगलवार, 4 जुलाई 2023

सीधे सरल निष्कपट बाबा नागार्जुन

 एक बार हापुड़ में त्रिदिवसीय जनवादी लेखक संघ की गोष्ठी थी 

बाबा नागार्जुन भी आए हुए थे तो एक दिन दोपहर के खाने के बाद हमसे बोले " चलो सुरेन्द्र पान खाया जाए " 

हमने कहा " चलिए "

थोड़ी दूर चलने के बाद हमने कहा कि " बाबा वो देखिए पान की दुकान " उन्होंने दुकान देखी और बोले " यहाँ नहीं आगे चलते हैं "

आगे बढ़े फिर एक दुकान दीखी हमने कहा कि 

" बाबा ये एक और दुकान " 

उन्होंने दुकान देखी और बोले 

" यहाँ नहीं आगे चलते हैं " 

आगे बढ़े इस तरह से कई दुकान छोड़ते गए काफ़ी दूर चलने के बाद एक दुकान पर रुके और बोले " यहाँ खाते हैं " फिर कुछ देर तक वहाँ खड़े रहे वहाँ पान खाकर वापस आए हमने रास्ते में पूछा कि " बाबा इतनी दुकान छोड़ने के बाद उस दुकान पर ही पान क्यों खाया तो बोले 

" उस दुकान पर शीशा था पान खाकर अगर रचे हुए होठ शीशे में न देखे जाएँ तो पान खाने का मज़ा ही क्या है " 

ऐसे थे हमारे सीधे सरल निष्कपट बाबा।

-सुरेंद्र सुकुमार की स्मृति से


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