‘क़िस्से साहित्यकारों के’ - ‘हिंदी से प्यार है’ समूह की परियोजना है। इस मंच पर हम  साहित्यकारों से जुड़े रोचक संस्मरण और अनुभवों को साझा करते हैं। यहाँ आप उन की तस्वीरें, ऑडियो और वीडियो लिंक भी देख सकते हैं। यह मंच किसी साहित्यकार की समीक्षा, आलोचना या रचनाओं के लिए नहीं बना है।

हमारा यह सोचना है कि यदि हम साहित्यकारों से जुड़े संस्मरण और यादों को जो इस पीढ़ी के पास मौजूद है, व्यवस्थित रूप से संजोकर अपनी आने वाली पीढ़ी को दे सकें तो यह उनके लिए अनुपम उपहार होगा।



गुरुवार, 13 अप्रैल 2023

धूमिल एक संस्मरण

 पिता जी जिस दिन कचहरी में मुकदमें की तारीख होती थी,उस दिन घर से साइकिल से थोड़ा पहले निकलते थे। और हमारे पड़ोसी पैदल।वे साइकिल चलाना नहीं जानते थे।वे घर से तीन किलोमीटर दूर हरहुआ (बाबतपुर एयरपोर्ट से कचहरी वाले रास्ते पर स्थित एक बाजार) से सड़क मार्ग के किसी साधन सवारी से कचहरी जाते। पिता जी जब हरहुआ पहुंचे तो उन्होंने पड़ोसी महोदय को साधन की प्रतीक्षा में खड़ा देखा। पिता जी साइकिल पर नीचे पैर लगाकर खड़ा हुए, उन्हें कैरियर पर बैठाकर कचहरी के लिए निकल पड़े।इस घटना की चर्चा बहुत दिन तक होती रही।

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रत्नशंकर पाण्डेय की स्मृति से

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