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हमारा यह सोचना है कि यदि हम साहित्यकारों से जुड़े संस्मरण और यादों को जो इस पीढ़ी के पास मौजूद है, व्यवस्थित रूप से संजोकर अपनी आने वाली पीढ़ी को दे सकें तो यह उनके लिए अनुपम उपहार होगा।



गुरुवार, 7 सितंबर 2023

कहानी आन्दोलन और कमलेश्वर

 संस्मरण


सुविख्यात कथाकार हिमांशु जोशी के सुपुत्र अमित जोशी नार्वे से एक पत्रिका का सम्पादन  कर रहे थे। उसका वार्षिकांक का प्रकाशन हुआ था जिसमें भारतीय कथाकारों की रचनाओं के साथ विश्व  के कई  देशों के प्रसिद्ध साहित्यकारों की रचनाएं थीं, उसके लोकार्पण  के निमित्त कमलेश्वर जी की अध्यक्षता में उनकै साथ अनेक साहित्यकार  राष्ट्रपति भवन गये थे। उनके साथ मैं भी था। 

महामहिम श्री कृष्णकांत जी उपराष्ट्रपति थे। जब तक महामहिम जी नहीं पधारे थे हम बाहर आपस में बातें कर रहे थे। कमलेश्वर  जी सिगरेट पीते थे। वे उसे जलाए बाहर खड़े-खड़े मस्ती में पी रहे। धुआं उड़ते हुए  देखकर  मैं उनके नजदीक गया और हंस कर बोला- आपके सिगरेट से उड़ता धुआं ऊपर कम,  नीचे अधिक फैल रहा है। वे हंसे, "नीचे फैलाना ही चाहिए। नीचे फैलने से मक्खी-मच्छरों का डर कम रहेगा।" "ये तो महामहिम भवन है। यहां कहां आ सकते हैं?" 'भाई, ये मत कहिए, वो सब जगह हैं। वो देखो  (घासों की ओर इशारा करते हुए) है न मच्छर!' "बिल्कुल सही कहा आपने। आपकी निगाह वाकई बहुत तेज और गहरी है।" वे बोले, "गहरी नहीं, पैनी है।"


फिर मैंने प्रसंग बदलते हुए पूछा, सातवें दशक का वह काल जब साहित्य  में कहानी आन्दोलन  को लेकर अनेक  खेमें बन गए थे और नयी कहानी के  नाम पर कुछ कहना शुरू कर दिया था कि, नयी कहानी अपने आखिरी चरण में मूल्यों अस्थिरता का शिकार  हो गयी है। उन्होंने कहा--'अतीत के प्रति एक चिपचिपा लगाव से नयी कहानी मुक्त नहीं हो पा रही थी। उसमें आदर्शीकरण के बिन्दु अभी भी शेष  रह गए थे। इसलिए कुछ कथा-लेखकों ने अपने -अपने ढंग  से नये-नये विचार और शिल्प लेकर सामने आए  और सचेतन कहानी, अकहानी, समकालीन कहानी के नाम दिए।' 

समकालीन कहानी अलग से क्यों? मेरे प्रश्न के उत्तर  में वे बोले, दरअसल समकालीन  कहानीकार नयी कहानी की रूढ़िवादी स्थिति से नाराजगी प्रकट करते हैं।' तभी हिमांशु जोशी बोल पड़े, डॉ.विमल समकालीन कहानी के हिमायती हैं। विमल जी नयी कहानी को  'टाइप' बन गयी है, कहते थे,  टाइप  न केवल शब्दों की, बल्कि प्रस्तुतीकरण  की भी।' 

मैं जिज्ञासावश पूछा, अब आन्दोलन  का क्या हश्र हुआ? हिमांशु जी बोले, वह अपने अपने को स्थापित  करने का एक  आन्दोलन था। इस पर कमलेश्वर  जी खिलखिलाहट  हंस पड़े। फिर वह कुछ कहते कि उपराष्ट्रपति जी पधारे और सभी साहित्यकार खड़े होकर उनका अभिवादन किए।  फिर आसन पर उनके बैठने के पश्चात सभी यथास्थान बैठ गए। औपचारिकता के बाद हिमांशु जी ने पत्रिका के सम्बन्ध  में संक्षिप्त प्रकाश डाला। फिर महामहिम जी ने पत्रिका का गरिमापूर्ण लोकार्पण किया। 

 कमलेश्वर  जी बहुत ही सुख मिजाज और हंसमुख स्वभाव  के थे। उनके  विरल  व्यक्तित्व  में  बड़ी सहजता थी। वस्तुतः वैसे लेखक अधिक नहीं हैं। बड़े- छोटे सभी  के साथ अपनत्व भरा स्नेह और गहरा प्यार। 

उपराष्ट्रपति भवन के सामने कई रोड पर मरम्मत चल रहा था। उसकी ओर इशारा करते हुए   कमलेश्वर बोले, अभी मरम्मत  हो रहा है, पता नहीं रात में दूसरे विभाग  वाले आकर खोद डालेंगे। ये हाल  पूरी दिल्ली की है।' उनकी बातें सुनकर महामहिम जी  मुस्कुराए और धीरे से कहा - "यही तो देश की प्रगति है।"

उनकी बात सुनकर  साश्चर्य सभी हंस पड़े। थोड़ी  देर बाद चाय पीकर सभी परस्पर बातें करते निकल चले--

फिर वही आपाधापी....समकालीन साहित्य  पर बहस....नये सृजन की ओर एक और पहल!


डॉ. राहुल की स्मृति से 


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