‘क़िस्से साहित्यकारों के’ - ‘हिंदी से प्यार है’ समूह की परियोजना है। इस मंच पर हम  साहित्यकारों से जुड़े रोचक संस्मरण और अनुभवों को साझा करते हैं। यहाँ आप उन की तस्वीरें, ऑडियो और वीडियो लिंक भी देख सकते हैं। यह मंच किसी साहित्यकार की समीक्षा, आलोचना या रचनाओं के लिए नहीं बना है।

हमारा यह सोचना है कि यदि हम साहित्यकारों से जुड़े संस्मरण और यादों को जो इस पीढ़ी के पास मौजूद है, व्यवस्थित रूप से संजोकर अपनी आने वाली पीढ़ी को दे सकें तो यह उनके लिए अनुपम उपहार होगा।



बुधवार, 27 सितंबर 2023

अनोखा भाई

महादेवी वर्मा को जब ज्ञानपीठ पुरस्कार से सम्मानित किया गया था, तो एक साक्षात्कार के दौरान उनसे पूछा गया था, 'आप इस एक लाख रुपये का क्या करेंगी? '

कहने लगीं, 'न तो मैं अब कोई कीमती साड़ियाँ पहनती हूँ , न कोई सिंगार-पटार करती हूँ। ये लाख रुपये पहले मिल गए होते तो भाई को चिकित्सा और दवा के अभाव में यूँ न जाने देती।' कहते-कहते उनका दिल भर आया।

कौन था उनका वो 'भाई'? 

हिंदी के युग-प्रवर्तक औघड़-फक्कड़-महाकवि पंडित सूर्यकांत त्रिपाठी 'निराला', महादेवी के मुंहबोले भाई थे।


एक बार वे रक्षा-बंधन के दिन सुबह-सुबह जा पहुंचे अपनी लाडली बहन के घर और रिक्शा रुकवा कर चिल्लाकर द्वार से बोले, 'दीदी, जरा बारह रुपये तो लेकर आना।'

महादेवी रुपये तो तत्काल ले आईं, पर पूछा, 'यह तो बताओ भैय्या, यह सुबह-सुबह आज बारह रुपये की क्या जरूरत आन पड़ी?

हालाँकि, 'दीदी' जानती थी कि उनका यह दानवीर भाई रोजाना ही किसी न किसी को अपना सर्वस्व दान कर आ जाता है, पर आज तो रक्षा-बंधन है, आज क्यों?

निराला जी सरलता से बोले, "ये दुई रुपया तो इस रिक्शा वाले के लिए और दस रुपये तुम्हें देना है। 

आज राखी है ना! तुम्हें भी तो राखी बँधवाई के पैसे देने होंगे।" 


ऐसे थे फक्कड़ निराला और ऐसी थी उनकी वह स्नेहमयी 'दीदी'। गर्व है हमें मातृभाषा को समर्पित ऐसे निराले कवि निराला जी और कवयित्री महादेवी पर। निष्काम प्रेम।

🙏🏻🪷😌

-अमिताभ खरे के सौजन्य से


व्हाट्सएप शेयर

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें