“ हिंदी कविता के लिए जानी-मानी और मुखर कवयित्री कीर्ति चौधरी (१९३४ -२००८ ) का लंदन में निधन । भारतीय समयानुसार शुक्रवार की सुबह तीन बजकर ४५ मिनट पर अंतिम सांस ली ! पिछले कुछ समय से अस्वस्थ चल रहीं कीर्ति चौधरी लंदन में रह रही थीं । वहां उनका उपचार हो रहा था।”
यह समाचार पढ़ते ही पूज्य चाची जी का चेहरा आँखों के आगे उभर आया। जानती हूँ कि समाचार पत्रों से सब पता चल ही जाता है । पूज्य कीर्ति आंटी जी की याद आ गयी जब से यह दुखद समाचार पढे। मुझे याद आ रहा है जब बंबई के, हमारे घर पर, अक्सर कीर्ति आंटी जी व अंकल जाने-माने रेडियो प्रसारक ओंकारनाथ श्रीवास्तव जी साथ आया करते थे और हम लोग भी उनके घर जाया करते थे। चाचीजी के हाथ की बनी उत्तर भारतीय रसोई व उसके विविध व्यंजन खाया करते थे। ...
मेरी यादों में "अतिमा " उनकी बिटिया भी है। बिटिया का का नाम, हिन्दी कविता के मूर्धन्य कवि श्रेष्ठ आदरणीय सुमित्रानंदन पंत जी ने रखा था, वह , बिटिया उस समय नन्ही सी थी ~
लिंक - http://www.bbc.co.uk/hindi/entertainment/story/2008/06/080613_kirti_chaudhary_obit.shtml
पूज्य कीर्ति चौधरी जी अपने कम लेखन में बहुत कुछ या समग्र विमर्श दे गई हैं। कीर्ति चौधरी जी तीसरे सप्तक की एकमात्र कवयित्री थीं। ‘तीसरा सप्तक’ सं. १९६० के संपादक अज्ञेय जी थे ६० के दशक में, प्रयाग नारायण त्रिपाठी, केदारनाथ सिंह, कुंवर नारायण, विजयदेव नारायण साही, सर्वेश्वर दयाल सक्सेना और मदन वात्स्यायन जैसे साहित्यकारों के साथ कवयित्री कीर्ति चौधरी को भी तीसरा सप्तक का हिस्सा बनाया गया था।
साहित्यकार केदारनाथ सिंह एवं महादेवी वर्मा के बाद हिंदी कविता में जो एक रिक्तता आई, उसे कीर्ति जी ने अपने मौलिक लेखन से पाट दिया था । उनकी कविता एक नए सांचे में थी, जिसकी बनावट अलग थी, इसमें एक ताज़गी थी और अपनी रचनाओं के तल में उनके पास एक ख़ास तरह का स्त्री सुलभ संवेदना का ढांचा था जो उनके समय में किसी और के पास न था।
तीसरा सप्तक के कवियों में से एक, जाने माने साहित्यकार, केदारनाथ सिंह जी उनके निधन पर शोक व्यक्त करते हुए कहते हैं, "तीसरा सप्तक के लिए यह दो ही वर्षों में तीसरा आघात है। इसी वर्ष प्रयाग नारायण त्रिपाठी का भी देहांत हो चुका है। इससे कुछ समय पहले मदन वात्स्यायन हमें छोड़कर चले गए | "
केदारनाथ सिंह कीर्ति चौधरी के कृतित्व की चर्चा करते हुए कहते हैं, "महादेवी वर्मा के बाद हिंदी कविता में जो एक रिक्तता आई थी, उसे कीर्ति अपने मौलिक लेखन से पाटती हैं। उनकी कविता एक नए सांचे में थी जिसकी बनावट अलग थी। इन में एक ताज़गी थी और अपनी रचनाओं के तल में उनके पास एक ख़ास तरह का स्त्री सुलभ संवेदना का ढांचा था जो उनके समय में किसी और के पास नहीं था। केवल एक बात थी वह यह कि कीर्ति नई कविता की कवियत्री थीं। ऐसी, जिन्होंने महादेवी वर्मा के जाने के बाद आई रिक्तता में अपनी खनक घोलनी शुरू की थी।
कीर्ति चौधरी जाने-माने रेडियो प्रसारक ओंकारनाथ श्रीवास्तव जी की पत्नी थीं |
नई कविता की शुरुआत आम तौर पर ‘दूसरा सप्तक’ ( १९५१ ) से होती है और ऐसा माना जाता है कि १९५९ में ‘तीसरा सप्तक’ के प्रकाशन के साथ वह अपने उत्कर्ष को पहुँच कर समाप्त हो जाती है। नई कविता के इसी उत्कर्ष काल की साक्षी और सारथी थीं कीर्ति चौधरी और उनकी रचनाएँ। उनकी कविताओं में एक मोहक प्रगीतात्मकता देखने को मिलती है। उनकी कविता में मनुष्य और उसके समग्र अनुभवों को पकड़ने का यत्न हुआ है।
वास्तव में कीर्ति चौधरी की कविता नई कविता के अन्य रचनाकारों की तरह ही संपूर्ण जीवन की कविता है।उनकी कविता में प्रतीकों और बिंबों का काफ़ी प्रयोग मिलता है।”
कुछ चर्चित रचनाएं-
दायित्व भार- तीसरा सप्तक
लता- १, २ और ३ तीसरा सप्तक
एकलव्य- तीसरा सप्तक
बदली का दिन- तीसरा सप्तक
सीमा रेखा- तीसरा सप्तक
कम्पनी बाग़
आगत का स्वागत
बरसते हैं मेघ झर-झर
मुझे फिर से लुभाया
वक़्त
जीवन परिचय -
एक जनवरी, १९३४ को उत्तर प्रदेश के उन्नाव जिले के नईमपुर गांव में एक कायस्थ परिवार में उनका जन्म हुआ। कीर्ति चौधरी का मूल नाम कीर्ति बाला सिन्हा था। उन्नाव में जन्म के कुछ बरस बाद उन्होंने पढ़ाई के लिए कानपुर का रुख किया। सं १९५४ में एम.ए. करने के बाद 'उपन्यास के कथानक तत्व' जैसे विषय पर उन्होंने शोध कार्य किया। साहित्य उन्हें विरासत में मिला और फिर आगे, जीवनसाथी के साथ साहित्य, संप्रेषण से कीर्ति जी जुड़ी रहीं । पिता एक जमींदार थे ।कीर्ति चौधरी जी की मां, सुमित्रा कुमारी सिन्हा स्वयं एक बड़ी कवयित्री, लेखिका और जानी-मानी गीतकार थीं। कीर्ति चौधरी का लेखन माँ के प्रभाव से मुक्त था और अपनी मौलिकता लिए हुए था। उनकी रचनाधर्मिता के पीछे अनुभवों की विविधता भी एक कारण रहा होगा। इसका संकेत कीर्ति अपने बारे में लिखते हुए करतीं हैं "गांव, कस्बे और शहर के विचित्र मिले-जुले प्रभाव , मेरे ऊपर पड़ते रहे हैं”
कीर्ति चौधरी जी का विवाह, हिंदी के सर्वश्रेष्ठ रेडियो प्रसारण कर्ता में से एक, ओंकारनाथ श्रीवास्तव जी से हुआ।
बी.बी.सी. हिंदी सेवा के साथ लंबे समय तक जुड़े रहे ओंकारनाथ श्रीवास्तव केवल रेडियो के अपने योगदान ही नहीं, बल्कि अपनी कविताओं और कहानियों के लिए भी जाने जाते हैं। जाने माने साहित्यकार अजित कुमार कीर्ति जी के भाई हैं। कीर्ति जी व ओंकारनाथ श्रीवास्तव जी की पुत्री अतिमा श्रीवास्तव अंग्रेज़ी साहित्यकार हैं। उनकी २ पुस्तकें १) लुकिंग फॉर माया २) ट्रांसमिशन लंदन से प्रकाशित हुई हैं ।
प्रस्तुति : लावण्या शाह
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