नई दिल्ली एम्स के आई सी यू में निर्मल वर्मा एडमिट हैं। उन्हें पेट का कैंसर है। उनकी सर्जरी की जाती है। सर्जरी के बाद उनकी सेहत तेज़ी से गिरती है। उनके बड़े भाई चित्रकार रामकुमार उनके पास हर वक़्त मौज़ूद है। निर्मल की हालत देखकर कहते हैं कि 'यह एक बीमार व्यक्ति का रेखाचित्र है, जैसे कोई जीवन को पकड़ रहा है। आशा के विरुद्ध आशा कर रहा है और साथ ही अंत की तैयारी कर रहा है।'
अस्पताल में मरीज के रूप में लेटे निर्मल के कुछ कथन रामकुमार को हवा में तैरते नज़र आते हैं
"हर लेखक चाहे वह अपने अनुभव में कितना भी अकेला क्यों न हो, हमेशा अपनी स्मृति के माध्यम से दूसरों से जुड़ा होता है।"
" एक महान कलाकृति न तो हमें बदलती है और न ही यह दुनिया को बदलती है। यह केवल दुनिया से हमारे सम्बन्ध और हमारी दृष्टिकोण को बदल देती है।"
'सर्दी का पसीना, भीतर की देह से नहीं, बाहर की दहशत से टपकता है। '
"अपने अधिकांश दिनों में लेखक मौन से जूझते हुए शब्दों की प्रतीक्षा करता है। "
डॉक्टर की सलाह के विरूद्ध जाकर निर्मल अपने मन की बात कहने के लिए अपना ऑक्सीजन मास्क हटा देते हैं। बीमारी के कारण बोल नहीं पाते तो वह नोट्स लिखकर राम कुमार से पूछते हैं कि राम, क्या मैं मर रहा हूँ ? निर्मल की मृत्यु चेतना उनके साहित्यिक लेखन के केंद्र में रही है। परिंदे में प्रकाशित उनकी एक प्रारंभिक कहानी का एक पात्र कहता है ' अपनी मृत्यु से ठीक पहले सोना कितना अजीब है, इसलिए मुझे नींद नहीं आती। '
एम्स के आईसीयू में अपनी चेतना खोने से पहले निर्मल अपना ऑक्सीजन मास्क फिर से उतार देते हैं और अपने भाई से कहते हैं ' राम, यूरोप में जैसे कलाकारों की अपनी घोषणाओं और कला की लेखनी की पुस्तकें छपी है, ऐसी किताब भारत में कोई नहीं है ? आख़िर भारतीय कलाकारों ने भी अपनी कला के बारे में लिखा है हुसैन साहब, अकबर पदमसी, रज़ा, स्वामीनाथन जैसे और भी कलाकार होंगे। एक ऐसी पुस्तक वढेरा को निकालनी चाहिए। इस पुस्तक को मैं एडिट कर दूँगा, तुम वढेरा से इस विषय में बात करना।'
उसके थोड़ी देर बाद निर्मल अपनी चेतना खो देते हैं और तीन दिन कोमा में रहने के बाद 25 अक्टूबर 2005 की सुबह निर्मल वर्मा इस दुनिया को अलविदा कह देते हैं।
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निर्मल वर्मा- 19 वीं पुण्यतिथि
(3 अप्रैल 1929- 25 अक्टूबर 2005)
धर्मेंद्रनाथ ओझा के सौजान्य से
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