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सोमवार, 21 अगस्त 2023

आज के कवि.....................कुंवर नारायण

 


जिनसे मिलकर ज़िन्दगी से इश्क हो जाए वो लोग

आपने शायद न देखें हों, मगर ऐसे भी हैं !


अपने कवि कुंवर नारायण के लिए मैं यह कह सकती हूं.


आज उन्हें याद करते हुए यह भी कह सकती हूं कि उनसे पहले न मिलने का दुख मन के अंधेरे में टिमटिमाता रहता है.


बहुत लंबा समय बीता ... 

दिल्ली विश्वविद्यालय के हिन्दी विभाग में एम ए के दो प्रश्नपत्रों के विकल्प रूप में जब मैंने कुंवर नारायण की काव्यकृति 'आत्मजयी' पर लघु शोध प्रबंध लिखना तय किया.


आत्मजयी कठोपनिषद की कथा पर आधारित काव्य कृति है.

बचपन में सुनी थी यह  कहानी ....पिता से जिद करने वाला बालक नचिकेता.... पिता का क्रोध झेल कर यमराज के द्वार पर प्रतीक्षा करने वाला नचिकेता !


शोध निर्देशक कवि-समीक्षक अजित कुमार ने आत्मजयी के हर पहलू  को भरपूर स्पष्ट किया, परिणामत: उस समय की प्रतिष्ठित मैकमिलन कंपनी ने पुस्तक को प्रकाशित किया, उत्तर प्रदेश हिंदी संस्थान ने पुरस्कार योग्य भी पाया.


कवि कुंवर नारायण उस समय लखनऊ में रहते थे, उनसे कभी कोई संवाद नहीं हुआ..मिलने का तो प्रश्न ही नहीं उठा !


मैं केवल इतना जानती रही कि वे बहुत ही संकोची कवि हैं, मिलना जुलना अधिक पसंद नहीं करते.


बरस बीते...

लखनऊ से कवि का निवास बदला.

कवि हिंदी कविता के केंद्र में वरिष्ठ कवि के रूप में सम्मानित रहे, पुरस्कृत हुए, उनके कविता संग्रह, अंकन, स्मृतियां, कला और फिल्म पर चिंतन ..बहुत कुछ प्रकाशित हुआ.


वे दिल्ली के चितरंजन पार्क में परिवार के साथ व्यवस्थित हो गए ..परिवार में पत्नी भारती जी और पुत्र अपूर्व.


अन्तत: तब आया अवसर उनसे मिलने का!


यह वह समय था जब कवि की दृष्टि में अंतस्तल का समग्र आलोक केंद्रित हो गया था ..

जब उनके दिल्ली आवास पर उनसे मिले, वे स्पर्श की ऊष्मा से हमें पहचानते थे!


गर्मजोशी से उन्होंने अपने दोनों हाथों में मेरी सामान्य उपस्थिति को जिस आत्मीयता से अपनाया.. वह मेरे अनुभव संसार का बेशकीमती टुकड़ा है !


पूरा दिन उनके सानिध्य में बीता ..कविताएं, विदेशी भाषा में उनके अनुवाद, नई किताबें जिन पर काम चल रहा था और सद्यप्रकाशित ..आत्मजयी की अगली कड़ी सा काव्य .. वाजश्रवा के बहाने.

इन पर चर्चा होती रही.


उस समय नवीनतम कृति कुमारजीव भी प्रकाशित हो चुकी थी जिसे लेकर वे बहुत खुश थे और उसकी कथाभूमि बहुत तन्मय भाव से हमने सुनी.


भारती जी और अपूर्व जी बहुत डूब कर उनकी बिखरी पांडुलिपियों पर काम कर रहे थे, अब भी कर रहे हैं ..नवीनतम प्रकाशित कृति इसका प्रमाण है.


यही प्रिय कवि से अंतिम भेंट रही !

यही उनके साथ व्यतीत किए गए नितांत निर्दोष पल !


अपने परिवेश में वे बहुत सम्मान के अधिकारी हुए, अधिकतर बांगला भाषी पड़ौसियों ने पद्मश्री प्राप्त विनम्र हिंदी कवि को सिर आंखों पर बैठाया, जब वे सुबह की सैर करने पार्क में जाते, तमाम लोग आदर सहित चरण स्पर्श करते.

उन्हें गर्व होता था कि एक महत्वपूर्ण कवि उनके बीच है.


कवि के जाने के बाद भारती जी कभी नहीं मिली, अपूर्व जी से शाब्दिक भेंट अक्सर होती है !


कवि के साथ-साथ आपके लिए भी तो कहना है ...


जिनसे मिलकर ज़िन्दगी से इश्क हो जाए वो लोग

आपने शायद न देखें हों मगर ऐसे भी हैं !


डॉ. विजय सती की स्मृति से 


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