‘क़िस्से साहित्यकारों के’ - ‘हिंदी से प्यार है’ समूह की परियोजना है। इस मंच पर हम  साहित्यकारों से जुड़े रोचक संस्मरण और अनुभवों को साझा करते हैं। यहाँ आप उन की तस्वीरें, ऑडियो और वीडियो लिंक भी देख सकते हैं। यह मंच किसी साहित्यकार की समीक्षा, आलोचना या रचनाओं के लिए नहीं बना है।

हमारा यह सोचना है कि यदि हम साहित्यकारों से जुड़े संस्मरण और यादों को जो इस पीढ़ी के पास मौजूद है, व्यवस्थित रूप से संजोकर अपनी आने वाली पीढ़ी को दे सकें तो यह उनके लिए अनुपम उपहार होगा।



मंगलवार, 11 अप्रैल 2023

मीरा कुटीर: महादेवी द्वारा रखी गई नींव

 जब वे संस्कृत में एम. ए. करने का सपना लेकर बनारस गई थीं और वहाँ के पंडितों ने यह कहकर लौटा दिया था कि ब्राह्मण न होने और स्त्री होने के कारण उन्हें वेद पढ़ने का अधिकार नहीं दिया जा सकता। तब वे अवसाद में आ गयी थीं और उससे मुक्त होने के लिए बद्रीनाथ की पैदल यात्रा पर निकल पड़ी थी। 1935-36 में वापसी के वक्त रामगढ़ में उन्होंने अपनी प्रिय कवयित्री मीराबाई के नाम पर 'मीरा कुटीर' की नींव रखी। इस बीच उन्होंने दो क्रांतिकारी काम और किए - अपना अंतिम कविता-संग्रह 'दीपशिखा' (1936) का प्रकाशन कर कविताएं लिखना छोड़, गद्य लिखना शुरू किया और हिंदी के सबसे निर्भीक क्रांतिकारी कवि निराला को राखी बाँधी।

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  अलंकार देव की स्मृतियों  से


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