जब वे संस्कृत में एम. ए. करने का सपना लेकर बनारस गई थीं और वहाँ के पंडितों ने यह कहकर लौटा दिया था कि ब्राह्मण न होने और स्त्री होने के कारण उन्हें वेद पढ़ने का अधिकार नहीं दिया जा सकता। तब वे अवसाद में आ गयी थीं और उससे मुक्त होने के लिए बद्रीनाथ की पैदल यात्रा पर निकल पड़ी थी। 1935-36 में वापसी के वक्त रामगढ़ में उन्होंने अपनी प्रिय कवयित्री मीराबाई के नाम पर 'मीरा कुटीर' की नींव रखी। इस बीच उन्होंने दो क्रांतिकारी काम और किए - अपना अंतिम कविता-संग्रह 'दीपशिखा' (1936) का प्रकाशन कर कविताएं लिखना छोड़, गद्य लिखना शुरू किया और हिंदी के सबसे निर्भीक क्रांतिकारी कवि निराला को राखी बाँधी।
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अलंकार देव की स्मृतियों से
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