पिशाच मोचन में हिंदी प्रचारक संस्थान की विशाल इमारत के गेट से जैसे ही अंदर प्रवेश किया किताबों की खुशबू ने मन मोह लिया। वरिष्ठ लेखक कृष्णचंद्र बेरी के बेटे विजय प्रकाश बेरी मुझे किताबों के रैक से भरे लंबे लंबे गलियारों से पहली मंजिल में ले गए। जहाँ बड़े से कमरे में व्हील चेयर में महान रचनाकार कृष्ण चंद्र बेरी बैठे थे ।बनारस के प्रकाशन पुरुष कहे जाने वाले वयोवृद्ध बेरी जी के मैंने चरण स्पर्श किए और दीवान पर बैठ गई ।बनारस ही नहीं बल्कि देश भर में हिंदी प्रचारक संस्थान का विशेष महत्व है। प्रचारक बुक क्लब, प्रचारक ग्रंथावली परियोजना जैसी योजनाओं को इस संस्थान ने प्रारंभ कर एक नए युग का सूत्रपात किया है। जबलपुर में थी तो विजय जी से खतो किताबत के दौरान मेरी किताब हिंदी प्रचारक पब्लीकेशन से प्रकाशित करने की चर्चा भी होती थी ।लेकिन वे पाठ्य पुस्तकों के प्रकाशन में मशगूल थे और बात आई गई हो गई थी। कृष्ण चंद्र बेरी से काफी देर तक संस्थान के विषय में चर्चा होती रही। जलपान भी आत्मीयता भरा था। चलने लगी तो उन्होंने अपना विशिष्ट ग्रंथ" पुस्तक प्रकाशन संदर्भ और दृष्टि" तथा "आत्मकथा प्रकाशकनामा" मुझे भेंट की ।दोनों ही किताबें काफी मोटी और ग्रंथनुमा थीं। बाद में हिंदी प्रचारक पत्रिका में हर साल मेरे जन्मदिन की बधाई ,हेमंत फाउंडेशन के पुरस्कारों और मेरी पुस्तकों के लोकार्पण, पुरस्कारों के समाचार छपते रहते थे। बल्कि छपते रहते हैं ।इस पत्रिका से कहीं भी रहते हुए मेरा जुड़ा रहना मानो हिंदी प्रचारक संस्थान से जुड़े रहना है। अब कृष्णचंद बेरी जी नहीं है लेकिन इस संस्थान से जुड़ना कुछ ऐसा हुआ कि जब भी बनारस जाती हूँ हिंदी प्रचारक संस्थान जाए बिना मन नहीं मानता।
-संतोष श्रीवास्तव की स्मृति से
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