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रविवार, 14 अप्रैल 2024

आफ द रिकार्ड - राजकीय सम्मान बनाम 'गले का तौंक'

 आफ द रिकार्ड


  राजकीय सम्मान  साहित्यकारों             

        के 'गले का तौंक' बना


एक मुहावरा है 'जीते जी मार डालना' इससे लोक नायक जयप्रकाश नारायण से लेकर राष्ट्र कवि सोहन लाल द्ववेदी तक नहीं बच सके। लोक नायक जय प्रकाश नारायण की मृत्यु की अफवाह  पर संसद तक ने  खड़े होकर दो मिनट का मौन रखा और श्रद्धांजलि अर्पित कर दी वहीं उत्तर प्रदेश सरकार ने अखबार की एक खबर पर राष्ट्र कवि सोहन लाल द्विवेदी को राजकीय सम्मान के साथ अंत्येष्टि करने का फरमान देडाला ।

   हुआ यह कि लोक नायक जय प्रकाश नारायन कि मृत्यु की अफवाह जब दिल्ली पहुंची। संसद चल रही थी। जे पी की मृत्यु की खबर ने पूरी संसद को गमगीन कर दिया। आनन फानन में शोक प्रस्ताव लिखा गया और संसद का सारा कार्य स्थगित करके शोक प्रस्ताव पढा गया। श्रद्धांजलि हो जाने के बाद जब संसद से निकल कर जे पी के निधन की पूरी जानकारी सांसदों को मिली तो उनके हाथों के तोते उड़ गए। जे पी जीवित थे। उनकी मृत्यु की खबर मात्र अफवाह थी। मुझसे इस पर टिप्पणी करने को कहा गया तो मैने काँव काँव में लिखा-उनके सिर पर कौव्वा बैठ गया था। जनता पार्टी के लोगो ने राहत की सांस ली। और सफाई में कहा भी-सिर पर कौव्वा बैठने पर झूठी मत्यु की अफवाह फैलाने का टोटका  गांव घरों में किया ही जाता है ताकि जिसके सिर पर कौव्वा बैठा हो उसकी उमर और बढ़ जाये।

इसी तरह का हादसा राष्ट्रकवि सोहन लाल द्विवेदी को झेलना पड़ा। हुआ यह कि राजधानी के एक प्रमुख दैनिक अखबार ने फतेहपुर के संवाददाता को निकाल दिया लेकिन खबरों को भेजने के लिये टेलीग्राफिक अथॉरिटी उसी संवाददाता के पास थी। उसने एक तीर से दो शिकार किये और उस दैनिक को खबर भेज दी कि "राष्ट्र कवि सोहन लाल द्विवेदी नहीं रहे।"

  जैसे ही तार से सोहन लाल द्विवेदी के निधन की खबर उस समाचार पत्र को लगी। एक  साहित्य प्रेमी सहसंपादक ने सायकिल उठाई और अपने बच्चे की आठवीं कक्षा की किताब का वह पेज फाड़ा जिसमे सोहनलाल द्विवेदी का जीवन परिचय छपा था और दफ्तरपहुंच कर "राष्ट्र कवि सोहन लाल द्विवेदी नही रहे "का शीर्षक लगा कर पहले पन्ने पर बॉक्स में छपने भेज दिया। सुबह होते ही सोहन लाल द्विवेदी की मृत्यु की खबर फैल गयी। मुख्यमंन्त्री के आदेश पर राष्ट्र कवि सोहन लाल द्विवेदी को राजकीय सम्मान के साथ अंतिम संस्कार  करने की राजाज्ञा जारी हो गयी।

      राजकीय आदेश से पीएसी का एक कमांडेंट पीएसी बैंड और सिपाहियों को लेकर सोहन लाल द्विवेदी के बिंदकी (उन्नाव) स्थित निवास पहुंचकर शोक ध्वनि बजवाने लगा। उन्होंने अपनी मृत्यु को झूठी खबर से क्षुब्ध होकर पी ए सी कमांडेंट का डपटा-बन्द करो यह बाजा। मै तो अभी जीवित हूँ।

राजकीय सम्मान के साथ उनकी अंत्येष्टि के लिए भेजे गए कमांडेंट ने कहा-मुझे सरकार के आदेश का पालन करना है ,जब तक राजाज्ञा वापस नही होती मैं जा नही सकता।

  लाचार होकर सोहनलाल द्विवेदी जी घर के पीछे के रास्ते से निकल कर टेलीफोन एक्सचेंज पहुंचे जो एक छोटी सी कोठरी में चल रहा था। इत्तिफाक से उन्हें मेरा ही नम्बर याद था। उन्होंने अपना सारा गुस्सा मुझ पर उतारा और कहा- यह तमाशा बन्द कराइये। मै जीवित हूँ फिर भी मेरे घर पर शोक धुनि बज रही है।

मैने घबराकर मुख्यमंन्त्री नारायण दत्त तिवारी जी से सम्पर्क किया।सुनकर वे भी हतप्रभ थे। राजाज्ञा वापस हुई और सरकार के खाते में राष्ट्रकवि सोहन लाल द्विवेदी एक बार पुनः जीवित हो गए। 

इसके कुछ दिनों बाद द्विवेदी जी लखनऊ मेरे गुलिस्ता कॉलोनी आवास पर आए और अखबार वालों पर बरस पड़े- तुम लोगों ने मुझे जीते जी मार डाला। ऐसा कोई दुश्मन भी नहीं करता । मै मुस्कराता हुआ उनका गुस्सा पीता रहा। मैने उन्हें छेड़ते हुए कहा दद्दा इसमे भी  आपकी भलाई भी छिपी है।  कविसम्मेलनों के मंच पर आपने जाना बंद कर दिया है। लोग भूलने लगे थे।खबर ने आपकी उपस्थित फिर से दर्ज करा दी।है कि नहीं?

हम्मम!

लेकिन आपकी कविताओं में फ्रस्ट्रेशन बहुत है!

मतलब?

 जी दद्दा !आपकी वह कविता चिड़ियों वाली-मुझे आता हुआ देखकर चिड़ियां क्यों उड़ जाती हैं?

तो इसमे ऐसा क्या?

जी ,यही तो!  चिड़िया बैंक बैलेंस के अलावा उमर भी देखती हैं!

सुनते ही उन्होंने मुक्का दिखाया और बोले तुम सब बदमाश हो,पीटे जाने के लायक हो,तभी ठीक होंगे।

       सोहन लाल द्विवेदी जी यूं तो बच्चों के कवि के रूप में प्रसिद्ध थे बाद में  वीर रस की राष्ट्रीय कविताओं ने उन्हें राष्ट्रीय कवि का सम्बोधन दे दिया!लेकिन जैसे जैसे कविसम्मेलनों में उन्होंने जाना कम किया ।ऊब और अकेलेपन ने उन्हे आ घेरा। घर परिवार होते हुए भी

खामोशी ने उन्हें ढक लिया।

     उनसे कोई सम्पर्क करे, बाहरी बात करे। आसान नहीं था। दूरदर्शन के कार्यक्रम अधिकारी और कवि लेखक आलोक शुक्ल को जब दूरदर्शन की ओर से उनकी

आर्काइव रिकॉर्डिंग के लिये उनके बिंदकी (उन्नाव)जाना पड़ा तो उनसे मिलाने के लिए कानपुर में मानस मंदिर वाले बद्रीनारायण तिवारी भी साथ थे। सोहन लाल द्विवेदी रजाई ओढ़े लेटे थे। बद्रीनारायण जी ने उनके पैर छुए और कहा -ये आलोक शुक्ल हैं ।दूरदर्शन के,आपके दर्शन करने आये हैं। सोहन लाल द्विवेदी जी ने सुनकर रजाई ओढ़ ली । फिर रजाई हटा कर बोले-लीजिए दर्शन कर लीजिये। इसके बाद फिर  रजाई ओढ़ ली -इशारा था अब जाइये। 

बद्री नारायण जी ने फिर बात बढ़ाई-आलोक शुक्ल दूरदर्शन के लिए आपकी रिकॉर्डिंग करना चाहते हैं।

-दूरदर्शन वाले बदमाश हैं मुफ्त में करना चाहते हैं।

 नहीं बाबा ! पैसा देंगे

उनकी पतोहू आगे आयी -कितना देंगे?

आलोक शुक्ल ने इशारा किया-दस हजार ! 

सोहन लाल द्विवेदी-हजार बस ?

पतोहू -नही बाबा जी ,दस हजार!

दस हजार रूपये सुनते ही वे उठकर बैठ गए,पतोहू से बोले-

फिर से पूछो?

बाबा पूरे दस हजार देंगे !

 बात तय हो गई अगले महीने की।

      एक महीने बाद साक्षात्कार के लिए राजेन्द्र राव जी से सम्पर्क किया गया तो उन्होंने यह कहके टाल दिया -हमारा उनसे क्या मतलब ?लेकिन बाद में राजी हो गए। दूरदर्शन के कैमरे के साथ सात लोगों की टीम राजेंद्रराव सहित आलोक शुक्ल एक महीने बाद बिंदकी पहुँचे। द्विवेदी जी तब भी अनमने थे।

साक्षात्कार शुरू हुआ। राजेन्द्र राव जी की सवालों से भरी लम्बी सूची थी। ढाई घण्टे की शूटिंग में भी बात नही बनी । हर सवाल पर उनका संक्षिप्त सवाल था-

ऐसा हो सकता है!

ऐसा नही भी हो सकता है !!

ऐसा होना तो नही चाहिए !!!

ऐसा ही हुआ होगा!!!!

  सब पसीने पसीने हो गए। साक्षात्कार पांच मिनट भी आगे नही बढ़ा। सवाल जवाब कदम ताल करते रहे। दूरदर्शन की टीम  सभी को लेकर अतिथि गृह लौट आयी।

सभी उधेड़बुन में थे तभी अवस्थी जी  (शायद धनन्जय अवस्थी) ने

 यह कहकर हिम्मत लौटाई कि कल इंटरव्यू में पंडित जी बोलेंगे।

     दूसरे दिन जब दूरदर्शन की टीम राजेन्द्र राव को लेकर पहुची तो पंडित सोहन लाल द्विवेदी कुर्ता ,टोपी लगाए बैठे थे। उनके हाथ मे ठंडाई  का बड़ा गिलास था। दिव्य जलपान के बाद साक्षात्कार प्रारम्भ हुआ। लगता था कि किसी जादू ने माहौल बदल दिया था। पंडित सोहन लाल द्विवेदी ने साक्षात्कार में अपनी काव्य यात्रा के अलावा गांधी जी के बारे में, देश भक्ति से जुड़े सवालों पर जम कर बात की। अपनी कविताएं सुनाई, बाल साहित्य पर खुलकर चर्चा की। कवि सम्मेलनों के संस्मरण रिकॉर्ड कराए। सभी आश्चर्यचकित थे। बोल कर ही नहीं

चलकर भी दिखाया अपने आप।किताबो को दिखाया।

  शाम को अतिथिगृह में जब अवस्थी जी से पूछा गया -पंडित जी अचानक बदल कैसे गए। कौन सी जादू की छड़ी आपने घुमा दी?

    अवस्थी जी ने मुस्कराते हुए कहा -किसी से कहिएगा नहीं, हमने आपके पहुंचने के पहले ही उनकी ठंडाई में भांग कुछ ठीक से मिला दी थी।

                  क्रमशः


अनूप श्रीवास्तव की स्मृति से


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