जबलपुर में परसाई के उस खस्ता हाल मकान के चलते एक घटना और याद आई। परसाई जी के जन्म दिन पर उनके सम्मान में आयोजित संगोष्ठी में आयोजकों का आग्रह था कि परसाई जी भी वहां चलते लेकिन परसाई जी ने कहा -वे उठकर चलने के लायक नही हैं।कृपया हठ न करें। लोगो ने कहा हम आपको इसी चारपाई सहित उठाकर ले चलेंगे। कहकर उन लोगो ने परसाई जी समेत पलंग उठा लिया।
परसाई जी भी कम हठी नही थे,,उन्होंने बिस्तर को अपने हाथों से जकड़ लिया। हुआ यह कि दरवाजा छोटा था और पलंग कुछ ज्यादा ही चौड़ा था। पलंग उठाने वालों ने उसे थोड़ा टेढ़ा किया और परसाई जी भूलुंठित हो गए। यह देखके ठाकुरप्रसाद सिंह और मैने उन लोगो को बरजा तब जाकर परसाई जी सहज हुए।
यहॉ नही ,उस बार ठाकुर प्रसाद सिंह परसाई जो को अट्ठहास शिखर सम्मान देने के निर्णय पर उनकी स्वीकृति लेने के लिए मुझे लेकर गए थे। परसाई जी ने अट्टहास सम्मान के बारे में पूछतांछ शुरु कर दी।कैसे करोगे, आगे बन्द तो नही होगा?
जब उन्हें बताया गया कि हम लोगो ने पांच लाख रु बैंक में जमा कर दिए है ।उसी के ब्याज से हर वर्ष दिया जाएगा। कितना?21000रु और 5100 रु। तो उन्होंने कहा -आश्वस्त हुआ। लेकिन इसे पहला सम्मान शरद जोशी को दो। मुझे बाद में यही आकर दे देना। शरद जोशी जी ने हामी भरने के बाद मनोहर श्याम जोशी को 1990 का अट्टहास शिखर सम्मान देने का निर्देश दिया और खुद जोशी जी को लखनऊ लेकर आये । शरद जोशी को बाद में दिया गया जबकि उनके निधन पर उनकी बेटी नेहा लेने आई।अट्टहासयुवा सम्मान प्रेम जनमेजय को दिया गया
अनूप श्रीवास्तव की स्मृति से
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