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शनिवार, 23 सितंबर 2023

शैलेश मटियानी और उनका स्वाभिमान!


हेमवती नंदन बहुगुणा जब उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री थे,वे पहाड़ के लेखकों के दुख और सुख की चिंता रखा करते थे। आर्थिक मदद भी  भेजा करते  थे। उनको जब साहित्यकार शैलेश मटियानी  की विपन्नता की खबर  मिली  तो  रहा नही गया। बहुगुणा जी ने तत्काल शैलेश मटियानी की आर्थिक मदद के लिए अपने निजी सचिव को निर्देश दिया। दस हजार रु का  चेक जिलाधिकारी लेकर शैलेश मटियानी के पास पहुंचा-मुख्य मंत्री जी ने कृपा पूर्वक यह आर्थिक सहायता भेजी है,कृपया इसे ग्रहण करे।

शैलेश मटियानी मानी औऱ स्वभिमानी साहित्यकार थे। सरकार से भेजी गई आर्थिक मदद ने उन्हें बौखला दिया था। जो किसी  भी तरह उन्हें मंजूर नही थी। जिलाधिकारी को हाथ जोड़कर वे घर के अंदर चले आये। दिमाग मे आंधी सी चल रही थी।  सिर पकड़ कर काफी देर तक बैठे रहे। चेहरा तमतमाया हुआ था। 

जिलाधिकारी ने कहा था-सर! आप बहुत बड़े लेखक हैं।चेक की राशि देखकर मैं समझ गया था। मुख्यमंत्री जी आपको बहुत मानते हैं। दस हजार बहुत होते हैं, मेरे जैसे डीएम की सैलरी सिर्फ सात सौ रुपये  ही है। आप को तो दस हजार!

मटियानी जी फैसला ले चुके थे। प्राकृतिस्थ होते हो चेक लेकर   मुख्यमंत्री बहुगुणा जी को तीन पन्नो का खर्रा लिखने बैठ गए।पत्र क्या था।एक एक शब्द आग का बबूला था। पत्र क्या ,पत्र बम था। उस तीन पन्ने के खर्रे को ज्यों का त्यों लिख पाना मुमकिन  नहीं है।

 पत्र में मटियानी ने लिखा था- आपको तो मालूम है। में बिकाऊ नही हूँ। शैलेश मटियानी को कोई खरीद सके, अभी तक पैदा नही हुआ है।आपका दस हजार का चेक वापस कर रहा हूँ।कृपया इसे अपने अपने ख़लीते (रेक्टम )मे डाल लीजिएगा।

जब तक शैलेश मटियानी का मुख्यमंत्री हेमवती नंन्दन बहुगुणा को सम्बोधित पत्र लखनऊ पहुंचा। सरकार बदल चुकी थी।मुख्यमंत्री की कुर्सी पर बहुगुणा जी की जगह नारायण दत्त तिवारी आसीन हो चुके थे।

मुख्यमंन्त्री के नाम आये पत्रों का जवाब लिखने की जिम्मेदारी उनके विशेष सचिव और वंशी और मादल की कविताओं से चर्चित कवि ठाकुर प्रसादसिंह पर थे। शैलेश मटियानी का आग बबूला होकर दस हजार रु का चेक सहित पत्र पढ़कर  ठाकुरप्रसाद सिंह जी मुस्कराए ।उन्हें शरारत सूझी। जवाब में उन्होंने मुख्यमंन्त्री नारायण दत्त तिवारी की ओर से एक भावुक पत्र लिखा और उपसचिव से कहा जब मुख्यमंन्त्री जी इन  पर हस्ताक्षर करे तो आप उनके पास ही रहिएगा और संभालिएगा। चुपचाप मै भी पीछे पीछे हो लिया और एक कुर्सी पर बैठ गया।

मुख्य मंत्री नारायण दत्त तिवारी पत्रों पर हस्ताक्षर करते- करते ठिठक गए । मेरी ओर देखा-यह क्या है- पत्र में लिखा था-आदरणीय मटियानी जी, आपका कृपा पत्र मिला, आभारी हुआ। अब मुख्य मंत्री की कुर्सी पर आदरणीय बहुगुणा की जगह आपका सेवक है।आपकी रचनाओं में मैं अपना जीवन दर्शन खोजता रहा हूँ। प्रार्थना है कभी पधारें ।

मुझे भी दर्शन दें। अपने चरणों की धूल से मेरे आवास  पवित्र हो जाएगा। अनवरत प्रतीक्षा में आपका नारायण दत्त तिवारी।

         तिवारी जी को मैने पत्र के पीछे का इतिहास बताया।सम्वेदना प्रतिफल देगी। तिवारी जी ने मेरे आग्रह पर उस पत्र पर  यह कहकर हस्ताक्षर कर दिए कि ठाकुर  प्रसाद सिंह से कहिएगा -'इतनी अतिशयोक्ति ठीक नहीं है।"

मुख्य मंत्री का पत्र शैलेश मटियानी को चला गया।

 कुछ समय बीता। रविवार के दिन जनता दरबार लगा हुआ था।  मुख्यमंत्री तिवारी जी जनता की शिकायतों को निपटाकर अपने कक्ष में चले गए । भीड़ छटने लगी थी। हेलीकॉटर तैयार था।उनको तत्काल दिल्ली प्रस्थान करना था। तभी वहां कहानीकार शैलेश मटियानी प्रकट हुए।यह कहते हुए कि नारायण दत्त कहाँ है। वह मेरी प्रतीक्षा कर रहे है। उनको बताइये कि शैलेश मटियानी उनके  आग्रह पर उपस्थित है।

उन्होंने न  तो ठाकुर प्रसाद सिंह की ओर देखा और न मेरी तरफ। अपनी धुन में नारायण दत्त तिवारी को पुकारते रहे।

     ठाकुर प्रसाद सिंह जी ने  मुझसे कहा अनूप जी  !जरा  सम्भालिए जाकर। मैने मुख्यमन्त्री जी के कक्ष में जाकर देखा नारायणदत्त तिवारी दिल्ली जाने के लिए तैयार थे।सामान हेलीकाप्टर में भेजा जा चुका था। मुख्यमन्त्री ने द्रष्टि उठाकर देखा। मैने उन्हें बताया शैलेश मटियानी 

अपनी पुस्तक देने पधारे हैं।

 शैलेश मटियानी कौन हैं ?

ये   वे ही साहित्यकार हैं जिन्होंने बहुगुणा जी का दस लाख रु का चेक  वापस कर दिया था। जवाब में आपका पत्र पाकर पधारे है।ठाकुर प्रसाद सिंह जी मटियानी जी को लेकर हेलीकाप्टर के पास खड़े हैं।

     मुख्य मंत्री- लेकिन मेरे पास समय कहाँ है। मेने आगाह किया था  !इतनीअतिशयोक्ति न किया करें!

मैने फिर अनुरोध किया हेलीकाप्टर में बैठने के पहले उनसे उनकी किताबे तो ले सकते है। क्रोधी किंतु सह्रदय लेखक है।

मुख्यमंत्री  -ठीक है,लेकिन मैं उनको पहचानूगा कैसे?

मैने सुझाव दिया आगे बढ़कर शैलेश मटियानी के कंधे पर  हाथ रख दूंगा।

 मुख्यम1न्त्री राजी हो गए,ठीक है आप ऐसा ही करें।लेकिन सिर्फ एक मिनट का समय बचा है। थोड़ी सहायता करें।

में तेज कदमो से आगे बढ़ा। मुख्यमंन्त्री जी ने मुझे धक्का दिया दौड़ कर पहुंचिए। आगे आगे मैं पीछे पीछे तिवारी जी।मैने जैसे ही शैलेश मटियानी के पीछे हाथ रखा ,मुख्य मंत्री नारायण दत्त तिवारी ने अपने दोनों भुजाओं को फैलाते हुए मटियानी जी को  लपेट लिया।

 इस दृश्य को देखकर सुरक्षा कर्मी तक

हड़बड़ा गए। मटियानी की सारी किताबे जमीन में गिर गई।

तिवारी जी ने झुककर किताबे उठायी,अरे इतनी  ढेर सारी किताबे आप हमारे लिए।सबको हेलीकॉप्टर में रख दो। रास्ते मे पढूँगा। मटियानी जी आपने तो आज मुझ अकिंचन को समृद्ध कर दिया। शैलेश मटियानी मुख्यमन्त्री जी को मात्र दो किताबे भेंट करने के लिए लाये  थे। मुख्य मंत्री नारायण दत्त तिवारी यह कहते हुए हेलीकाप्टर में बैठ गए -अब आप नही मैं स्वयम आपके घर आकर दर्शन करूंगा और  साग रोटी भी खाऊंगा।ठाकुर प्रसाद जी मटियानी जी के स्वागत सत्कार में कोई कमी नही होना चाहिए।

इसी के साथ मुख्यमंत्री का हेलीकॉटर के उड़ने पर उड़ी धूल का गर्दोगुबार जब बैठा तो वहां  मात्र तीन लोग ही बचे थे। शैलेश मटियानी,ठाकुर प्रसाद सिंह जी और एक अदद चश्मदीद मै।

 - अनूप श्रीवास्तव की स्मृति से



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