एक रोचक कथा
" एक दिन उन्होंने (दद्दा ने) मुझे (नरेन्द्र शर्मा को) एक दोहा सुनाया:-"औसर बीते, दिन गए, जाव बिप्र घर जाव। तोहि न भूले पुत्र-दुख, मोहि पूँछ कौ घाव।।" दोहा सुना कर, दद्दा ने पूछा- "अच्छा बताओ यह दोहा किसने, किसके प्रति कहा होगा।" मैंने उत्तर दिया- "कहा तो गया है किसी विप्र के प्रति..." दद्दा ने बात काटी- "पर कहा किसने है?" मैं सोचने लगा। विचार आया कि शेर को मूँछ प्यारी होती है वानर को पूँछ। रामायण में रावण की उक्ति की स्मृति ने विचार की पुष्टि की। लेकिन फिर संशय हुआ कि वानर की पूँछ का घाव आख़िर क्योंकर इतना अविस्मरणीय होगा। मैं चक्कर में पड़ गया और कुछ देर बाद मैंने हार मान ली। दद्दा ने मुझे एक लोक-कथा कह सुनाई।"
" ब्राह्मण किशोर ने पेड़ के नीचे बैठ कर, कथा कही। नाग ने दक्षिणा दी। दक्षिणा पाते ही ब्राह्मण-पुत्र की बुद्धि भ्रष्ट हो गई। उसने सोचा, क्यों न नाग को मार डालूँ? और बाँबी (सर्पबिल) को खोद कर, सारी स्वर्ण-राशि क्यों न एक ही फटके में हथिया लूँ? आशीर्वाद देने को उठे हुए हाथ में डंडा था। ब्राह्मण ने नाग पर भरपूर वार किया। साँप की पूँछ घायल हुई। घायल नाग ने पलट कर आक्रमण किया। ब्राह्मण कुमार मर गया। वृद्ध ब्राह्मण ने शोक के दिन पूरे किए और एक दिन वह कथा सुनाने फिर पेड़ के नीचे आ बैठे। कथा सुनने के पूर्व ही नाग ने उन्हें दक्षिणा दे दी और कहा:-"औसर बीते, दिन गए, जाव विप्र घर जाव। तोहि न भूले पुत्र-दुख, मोहि पूँछ की घाव।।"
श्री परितोष नरेन्द्र शर्मा की स्मृति से
प्रस्तुति : लावण्या शाह
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